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आज से पांच हजार साल पहले द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने मोक्षदा शुक्ल एकादशी के दिन महान धनुर्धारी पांडु पुत्र अर्जुन को कुरुक्षेत्र के मैदान में जो उपदेश दिया था वह भगवत गीता है। इस दिन को आज संपूर्ण विश्व में गीता जयंती के नाम से मनाया जाता है।
आंखों के सामने अपने ही परिवार को शत्रु रूप में देख कर और होने वाले परिणाम के बारे में सोच-सोच कर महायोद्धा अर्जुन भी अपने क्षत्रिय धर्म से विचलित होने लगे। वह किसी भी हाल में गुरु द्रोणाचार्य, भीष्म पितामह और अन्य परिजनों पर अपना तीर नहीं डाल सकते थे। ऐसे में अर्जुन के मानसिक द्वंद को शांत करने के लिए भगवान कृष्ण उनके उपदेशक भी बने। उन्होंने रणभूमि में अर्जुन को जीवन की वास्तविकता और मनुष्य धर्म से जुड़े कुछ ऐसे उपदेश दिए जिन्हें “गीता” में संग्रहित किया गया।
हिन्दू धर्म की पवित्र पुस्तक गीता, भगवान श्रीकृष्ण के उन्हीं उपदेशों का संग्रहण है, जो उन्होंने महाभारत के युद्ध के दौरान अपने मार्ग से भटक रहे अर्जुन को सार्थक उपदेश दिया। भगवद्गीता का हिंदू समाज में सबसे ऊपर स्थान है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसका प्रभाव कालजयी है। मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी का दिन गीता जयंती के रूप में प्रति वर्ष मनाया जाता है गीता की उत्पत्ति का स्थान कुरुक्षेत्र है।
यह उपदेश स्वयं श्री कृष्ण ने नंदी घोष रथ के सारथी के रूप में दिया था। गीता हर व्यक्ति के लिए है यह मानवता का ज्ञान देती है। इस ग्रंथ के अठारह छोटे अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्य मात्र के लिए बहुमूल्य है। उस समय भगवान कृष्ण द्वारा कहे गए उपदेशों ने न सिर्फ अर्जुन की दुविधा को शांत किया बल्कि आज भी वे मनुष्य के कई सवालों का जवाब हैं।
गीता के उपदेश मनुष्य जीवन की कई समस्याओं का समाधान तो हैं ही, साथ ही साथ यह एक सफल जीवन जीने में भी मददगार साबित हो सकते हैं। गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी। इस दिन गीता को सुगंधित फूलों से सजा कर पूजा करनी चाहिए तथा गीता का पाठ करना चाहिए।
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