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शिमला। हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में लावारिस पशुओं (unclaimed cattle) के रख रखाव बारे राज्य सरकार द्वारा पॉलिसी (Policy) बनाई जा रही है। इस पॉलिसी के तहत प्रदेश के हरेक जिले में पशु अभ्यारण स्थापित किए जाएंगे। जहां पर लावारिस पशु, खासतौर पर गाय को सुरक्षित रखा जाएगा। यह जानकारी राज्य सरकार की और से हाईकोर्ट (High Court) को दी गई। एक जनहित याचिका की सुनवाई के पश्चात मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और न्यायाधीश संदीप शर्मा की खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिए कि वह सुनिश्चित करे कि हरेक पशु अभ्यारण में सारी मूलभूत सुविधाएं हों, जैसे पशु औषधालय, पैरा वेटरनरी स्टाफ, पशुओं की समय- समय पर जांच के लिए डॉक्टर, दवाइयां, औजार जिससे जख्मी पशुओं की चिकित्सा की जा सके। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पशु अभ्यारण में विपरीत मौसम के लिए पशुओं को शेड बनाया जाए और उनके चारे के लिए उचित प्रबंध किया जाए। अदालत ने सरकार को आदेश दिए कि वह आम जनता को जागरूक करें, ताकि लोग लावारिस पशुओं को पशु अभ्यारण में चारा दान करे। इस बारे प्रदेश हाईकोर्ट ने मामले की आगामी सुनवाई तक विस्तृत स्टेट्स रिपोर्ट तलब की है।
वर्ष 2014 में हाईकोर्ट की पीठ ने दिए थे यह आदेश ज्ञात रहे कि वर्ष 2014 में न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने प्रार्थी भारतीय गौवंश रक्षण परिषद हिमाचल प्रदेश द्वारा जनहित में दायर याचिका राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि प्रदेश की सभी सड़कों को 31 दिसंबर 2014 तक लावारिस पशु मुक्त बनाया जाए। अदालत ने राज्य सरकार, नगर परिषद, नगर पंचायत, नगर पालिका और ग्राम पंचायतों को लावारिस पशुओं के लिए सदन और गौशाला बनाए जाने के भी आदेश दिए थे। अदालत ने पूरे प्रदेश में गौहत्या और गौमांस की बिक्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था। अदालत ने पशु पालन विभाग को आदेश दिए थे कि पशुओं को टेग लगाए जाएं और पुलिस को आदेश दिए थे कि पशुओं से क्रूरता के कितने मामले दर्ज किए गए और क्या कार्रवाई की गई। अदालत ने इन आदेशों की अक्षरश अनुपालना के लिए प्रदेश के मुख्य सचिव को जिम्मेदार ठहराया था।
हाईकोर्ट के इस निर्णय को राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के समक्ष चुनौती दी थी और सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश पर स्थगन आदेश पारित किए थे। पार्थी ने हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों की अनुपालना के लिए जनहित में याचिका दायर की है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि वर्ष 2014 में पारित आदेशों की अनुपालना करने में राज्य सरकार नाकाम रही है। मामले की पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिए थे कि वह सुप्रीम कोर्ट में दायर किए गए मामले बारे अदालत को बताएं। मामले की सुनवाई 8 जुलाई को निर्धारित की गई है।
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