- Advertisement -
रेणुकाजी। भारत की संस्कृति मेलों की विचारधारा पर आधारित रही है तथा मेलों के माध्यम से जहां लोगों को आपस में मिलने जुलने का अवसर प्राप्त होता है। वहीं पर ऐसे आयोजनों से प्रदेश की समृद्ध संस्कृति का सरंक्षण एवं संवर्धन होता है। यह बात राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आज छह दिवसीय अंतरराष्ट्रीय श्री रेणुकाजी मेले के समापन अवसर पर कही। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश को विश्व में देवभूमि के नाम जाना जाता है और प्रदेश की इस पावन धरा पर लोग बड़े अनुशासन एवं प्राचीन परंपरा के अनुरूप मेलों का आयोजन करते हैं।
राज्यपाल ने कहा कि ईश्वर के चित्र की पूजा नहीं, बल्कि उनके चरित्र की पूजा करनी चाहिए और उनके आदर्शों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की पावन भूमि पर अनेक ऋषि मुनियों ने कंदराओं में तपस्या करके समाज को आध्यत्मिकता से जोड़कर एक सूत्र में बांधने का संदेश दिया था। हिमाचल प्रदेश की धरती को स्वच्छ एवं नशामुक्त बनाना है, जिसके लिए सभी लोगों को अपना रचनात्मक सहयोग देना होगा तभी इस मिशन को सफल बनाया जा सकता है।
इससे पहले राज्यपाल द्वारा भगवान परशुराम के प्राचीन मंदिर (देवठी) में विश्व शांति के लिए वैदिक मंत्रों के साथ हवन यज्ञ किया तथा परंपरा के अनुसार भगवान परशुराम सहित अन्य देवताओं की विदाई की गई। राज्यपाल द्वारा मेले में विभिन्न विभागों द्वारा लगाई गई विकासात्मक प्रदर्शनियों का भी अवलोकन किया तथा उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने वाले विभागों के अधिकारियों को पुरस्कृत किया गया। इसमें आयुर्वेद विभाग ने प्रथम, कृषि ने द्वितीय और शिक्षा विभाग की प्रदर्शनी ने तृतीय पुरस्कार प्राप्त किया।
डीसी सिरमौर एवं अध्यक्ष श्री रेणुकाजी विकास बोर्ड ललित जैन ने राज्यपाल सहित सभी अतिथिगणों का स्वागत किया और मेले के आयोजन में सहयोग देने वाले सभी गैर सरकारी एवं सरकारी सदस्यों, स्थानीय जनता तथा विभिन्न संस्थाओं का आभार व्यक्त किया। उन्होने कहा कि मेले की पांच सांस्कृतिक संध्याओं में 250 से अधिक सिरमौर व प्रदेश के कलाकारों को अपनी कला के प्रदर्शन का अवसर प्रदान किया गया। डीसी ने इस अवसर पर राज्यपाल को सिरमौर लोईया, डांगरा, हिमाचली टोपी व स्मृति चिन्ह भेंट करके श्री रेणुकाजी विकास बोर्ड की ओर से सम्मानित किया गया।
- Advertisement -