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वाल्मीकि रामायण” के अनुसार “हनुमान” जी का “जन्म” कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को “मंगलवार” के दिन, स्वाति नक्षत्र और मेष लग्न में हुआ था,पर चैत्र माह की “पूर्णिमा” को भी “हनुमान जयंती” मनाई जाती है। प्रभु हनुमान भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार हैं। आज भी जहां रामचरितमानस का पाठ होता है वहां प्रभु हनुमान किसी न किसी रूप में अवश्य मौजूद होते हैं। हनुमान पूजन करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। माना जाता है कि पूर्णिमा की रात्रि को हनुमान जी का जन्म हुआ था।
एक दिन सुबह जब “केसरीनंदन” प्रात:काल अपनी निद्रा से जागे तो उन्हें बहुत तेज भूख लगी। उन्होंने माता “अंजना” को पुकारा, तो पता चला कि माता भी घर में नहीं हैं। इसलिए वह स्वयं ही खाने के लिए कुछ तलाश करने लगे, परन्तु उन्हें कुछ भी नहीं मिला। इतने में उन्होंने एक झरोखे से देखा तो सूर्योदय होते वह एक दम लाल दिखाई दे रहा था। “केसरीनन्दन” उस समय बहुत छोटे थे, इसलिए उन्हें लगा कि उदय होता लाल रंग का सूर्य कोई स्वादिष्ट फल है, सो वे उसे ही खाने चल दिए।पवनदेव ने “केसरीनंदन” को सूर्यदेव की तरफ जाते देखा तो वे भी उनके पीछे भागे जिससे कि वे सूर्यदेव के तेज से उनको होने वाली किसी भी प्रकार की हानि से बचा सकें।
उसी समय इंद्र भी सूर्य के पास गये और देखा कि “केसरीनन्दन” सूर्य को अपने मुख में रखने जा ही रहे हैं। जब इंद्र ने उन्हें रोका तो “हनुमान” उनकी तरफ बढे, तब इंद्रदेव ने अपने वज्र से उन पर प्रहार कर दिया, जिससे वे मूर्च्छित हो गए।अपने पुत्र पर इंद्र के वज्र प्रहार को देख “पवनदेव ने अपने पुत्र को उठाया और एक गुफा में लेकर चले गए तथा क्रोध के कारण उन्होंने पृथ्वी पर वायु प्रवाह को रोक दिया, जिससे पृथ्वी के सभी जीवों को सांस लेने में कठिनाई होने लगी और वे धीरे-धीरे मरने लगे। ब्रह्माजी और सभी देवतागण पवनदेव के पास पहुंचे।ब्रह्मा जी ने “केसरीनन्दन” की उस अवस्था को समाप्त किया और कहा कि सभी देवतागण अपनी शक्ति का कुछ अंश “केसरीनंदन” को दें, जिससे आने वाले समय में वह राक्षसों का वध कर सके। सभी ने अपनी शक्ति का कुछ अंश “केसरीनंदन” को दिया जिससे वे और अधिक शक्तिशाली हो गए।
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