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जन्माष्टमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार नटखट नंदलाल यानी कि श्रीकृष्ण के जन्मदिन को श्रीकृष्ण जयंती या जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है। अष्ठमी की रात 12 बजे भगवान का श्रीकृष्ण का संकेतिक रूप से जन्म होने पर व्रत का परायण किया जाता है। बहुत से लोग मथुरा जाकर भगवान श्रकृष्ण की जन्मभूमि का दर्शन करते हैं। यह हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। कहा जाता है कि इस दिन सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में आठवां अवतार लिया था।
हालांकि इस बार कृष्ण जन्माष्टमी की तारीख को लेकर लोगों में काफी असमंजस में हैं। लोग उलझन में हैं कि जन्माष्टमी 23 अगस्त या फिर 24 अगस्त को मनाई जाए। ऐसे कई सवाल अभी से लोग पूछ रहे हैं। मामला उलझा है तिथि और नक्षत्र को लेकर। दरअसल अगर भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी की तिथि को देखें तो 23 अगस्त, 2019 की तारीख कृष्ण जन्माष्टमी के लिए निकलता है। जबकि कान्हा का जन्मदिन रोहिणी नक्षण में मनाने की परंपरा का पालन उनकी जन्म स्थली मथुरा में है। अब इसी को लेकर पूरे देश में उलझन है कि आखिर जन्माष्टमी का व्रत कब रखें और जन्मोत्सव कब मनाएं ?
तिथि: 23 अगस्त और 24 अगस्त
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 23 अगस्त 2019 को सुबह 08 बजकर 09 मिनट से
अष्टमी तिथि समाप्त: 24 अगस्त 2019 को सुबह 08 बजकर 32 मिनट तक
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 24 अगस्त 2019 की सुबह 03 बजकर 48 मिनट से.
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 25 अगस्त 2019 को सुबह 04 बजकर 17 मिनट तक।
जानिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूजा का शुभ मुहूर्त –
अभिजीत मुहूर्त – दोपहर 12:04 से 12 :55 बजे तक
जन्माष्टमी निशिता पूजा का समय – मध्य रात्रि 12:09 से 12: 47 बजे तक
निशिता पूजा शुभ मुहूर्त की अवधि – 38 मिनट
भगवान कृष्ण की पूजा स्मार्त, शैव और वैष्णव संप्रदाय में सभी वर्ग करते हैं। धर्म सिन्धु के अनुसार उदया तिथि को पालन करते हुए पूजा करते हैं तो कुछ सिर्फ मुहूर्त को ही प्रधानता देते हैं। वहीं, किसी के लिए नक्षत्र ही सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। स्मार्त और शैव संप्रदाय के लोग जिस दिन जन्माष्टमी मनाते हैं, उसके अगले दिन वैष्णव संप्रदाय जन्माष्टमी मनाता है।
जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोल सकते हैं। कृष्ण की पूजा आधी रात को की जाती है। जन्माष्टमी के दिन व्रत रखने वालों को अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के खत्म होने के बाद व्रत का पारण करना चाहिए। अगर दोनों का संयोग नहीं हो पा रहा है तो अष्टमी या रोहिणी नक्षत्र उतरने के बाद व्रत का पारण करें।
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