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शिमला। प्रदेश में मानवाधिकार आयोग व लोकायुक्त का गठन न करने के मामले को हाईकोर्ट (Himachal Pradesh High Court) ने गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार (State Govt) को आदेश दिए हैं कि एक सप्ताह के भीतर अदालत को बताए कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार राज्य में मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission) की स्थापना क्यों नहीं की गई। जस्टिस धर्म चंद चौधरी और जस्टिस ज्योत्स्ना रिवाल दुआ की बेंच ने जनहित में दायर याचिका की सुनवाई के दौरान अपने आदेशों में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समय में जवाब नहीं दायर किया गया तो उस स्थिति में अदालत कड़े आदेश पारित करेगी। मामले पर सुनवाई 7 नवंबर के लिए निर्धारित की गई है।
राज्य में मानवाधिकार आयोग वर्ष 2005 से कार्य नहीं कर रहा
कोर्ट के समक्ष दायर जनहित याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि राज्य में मानवाधिकार आयोग वर्ष 2005 से कार्य नहीं कर रहा है। राज्य सरकार की ओर से इसे क्रियाशील रखने के लिए जरूरी पदों पर नियुक्तियां नहीं की गई है। जबकि पिछले 15 साल में तीन बार सरकार बदल चुकी है, जिससे लोगों के अधिकारों के हनन की स्थिति में उनको तुरन्त न्याय दिलवाने के लिए कोई उपयुक्त फोरम नहीं है। याचिका में ऐसे कई उदाहरण दिये गए है कि मानवाधिकार आयोग न पर लोगों को गुहार लगाने के लिए अदालतों का सहारा लेना पड़ा। इसी तरह राज्य सरकार की ओर से लोकायुक्त का भी गठन नहीं किया गया है। जिस कारण लोकायुक्त (Lokayukta) के अधीन आने वाले मामलों पर कोई कार्यवाही नहीं हो पा रही है।
हाईकोर्ट की ओर से अधिसूचना के तहत निजी सचिव करण सिंह कंवर को कोर्ट मास्टर के पद पर पदोन्नत किया गया है। फिलहाल उनकी सेवाओं को सचिव के तौर पर लिया जाएगा। केशव राम शर्मा जजमेंट राइटर को निजी सचिव के पद पर व शंकर लाल को स्टेनोग्राफर के पद से जजमेंट राइटर के पद पर पदोन्नत किया गया है।
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