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हिमाचल में सत्ता का रास्ता इतना संकरा है कि यहां सरकार पलटने या बनाने के लिए महज अढ़ाई लाख वोट ज्यादा चाहिए। यानी राज्य के दो प्रमुख दलों भाजपा और कांग्रेस में वोट का अंतर महज 2.50 लाख हो, तो सीटों का अंतर लगभग डबल हो जाता है और इससे बहुमत की सरकार भी बन जाती है। हिमाचल में हुए पिछले पांच चुनावों में लगभग यही दिखा है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि राज्य में भाजपा और कांग्रेस का काडर वोट इतना सघन है कि तीसरे विकल्प को मौका ही नहीं मिलता। कई बार तो जितना वोट निर्दलीय ले जाते हैं, उससे भी कम वोट से भाजपा और कांग्रेस के भीतर सत्ता का फैसला हो जाता है। यही वह चार से सात फ़ीसदी का वोट स्विंग है, जो हिमाचल में बारी-बारी की सरकार देता है। इसी रिवाज को इस बार जयराम सरकार ने चुनौती दी है और नतीजा आठ दिसंबर को हमारे सामने होगा।
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