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शिमला। हमीरपुर जिला के तहसील नादौन के जालरी गांव की 80 वर्षीय विद्या देवी को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) से बड़ी राहत मिली है। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने बुजुर्ग महिला (Elderly Woman) की अपील को स्वीकारते हुए राज्य सरकार (State Government) पर 10 लाख रुपए की कॉस्ट लगाते हुए प्रार्थी को कब्जाई गई भूमि की कीमत अदा करने के आदेश दिए हैं। मामले के अनुसार अपीलार्थी विद्या देवी की 3.34 हेक्टेयर भूमि को 53 वर्ष पहले हिमाचल सरकार ने सड़क निर्माण हेतु जबरन कब्जे में लिया था। भूमि राज्य सरकार द्वारा 1967-68 में भूमि अधिग्रहण की कार्यवाही या कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना नादौन-सुजानपुर सड़क के निर्माण के लिए ले ली गई थी। हाईकोर्ट (High Court) में याचिक खारिज होने के बाद पार्थी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मामले में व्यवस्था देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी नागरिक की निजी संपत्ति को बलपूर्वक नहीं छीन सकती। संवैधानिक क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करने के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। जहां भी न्याय की मांग हो वहां संवैधानिक अदालतों को अपने क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करना चाहिए ना कि न्याय को हराने के लिए। न्यायाधीश इंदु मल्होत्रा व न्यायाधीश अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा कि कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर किसी नागरिक की निजी संपत्ति को जबरन छीनना ना केवल मानव अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत संवैधानिक अधिकार का भी उल्लंघन है।
बता दें कि वर्ष 2004 में कुछ लोगों ने जिनकी भूमि भी राज्य सरकार द्वारा ली गयी की गई थी, ने हिमाचल हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट HC ने राज्य सरकार को भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 1894 के तहत उनकी जमीनों का अधिग्रहण करने और कानून के तहत उन्हें मुआवजा देने का आदेश दिया। इसके बाद विद्या देवी ने भी वर्ष 2010 में हाईकोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर अपनी जमीन के मुआवजे की मांग की। राज्य सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि 42 वर्ष के प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत के आधार पर अब सरकार ने विवादित भूमि का मालिकाना हक प्राप्त कर लिया है और विवादित जमीन पर सड़क का निर्माण भी पहले ही कर लिया गया था। वर्ष 2013 में हिमाचल हाईकोर्ट ने विद्या देवी की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट के फैसले को प्रार्थी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसे स्वीकारते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य नागरिकों को उनकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी नागरिक की संपत्ति हड़पने के लिए कल्याणकारी राज्य ‘प्रतिकूल कब्जे’ के सिद्धांत का उपयोग नहीं कर सकता है।
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