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हिमाचल: ‘पर्वत धारा’ योजना जल स्रोतों में फूकेंगी जान, 20 करोड़ हो रहे खर्च
Last Updated on May 2, 2021 by Sintu Kumar
शिमला। प्रदेश सरकार राज्य में जल स्रोतों के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। इस दिशा में सरकार ने जल स्रोतों के संवर्धन तथा भू-जल में वृद्धि के लिए ‘पर्वत धारा योजना’ आरंभ की है। यह योजना वन विभाग (Forest Department) द्वारा 20 करोड़ रुपये व्यय कर वन क्षेत्रों में लागू की जा रही है। इस योजना को प्रदेश में लाहुल-स्पीति एवं किन्नौर जिलों को छोड़कर शेष जिलों में क्रियान्वित किया जा रहा है, जिसमें जल शक्ति विभाग नोडल विभाग के तौर पर कार्य कर रहा है। हिमाचल प्रदेश में दो-तिहाई भू-भाग में वन है तथा लगभग 27 प्रतिशत भू-भाग हरित आवरण से ढका है इसलिए पर्वत धारा योजना के क्रियान्वयन में वन विभाग की महत्वपूर्ण भूमिका है।
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इस योजना के अंतर्गत विलुप्त हो रहे जल स्रोतों (Water Sources) के जीर्णोंद्धार तथा ढलानदार खेतों में सिंचाई उपलब्ध करवाने के लिए वन विभाग द्वारा छोटे-बड़े जल संचायन ढाचों का निर्माण कार्य आरंभ किया गया है। योजना के अंतर्गत जल सग्रंहण, जलाशयों के निर्माण के साथ-साथ उनका रख-रखाव तथा प्रबंधन किया जा रहा है। इन कार्यों से भू-जल स्रोतों के जीर्णोद्धार के साथ-साथ ग्रीष्म ऋतु में सिंचाई का भी प्रावधान सुनिश्चित होगा। इस योजना के तहत वन विभाग ने वर्ष 2020-21 में दस वन मंडलों में पायलट आधार पर कार्य आरंभ किया है, जिसमें बिलासपुर (Bilaspur), हमीरपुर, जोगिंद्रनगर, नाचन, पार्वती, नूरपुर, राजगढ़, नालागढ़, ठियोग तथा डलहौजी (Dalhousie) वन मंडल शामिल हैं। इस योजना के तहत उपरोक्त वन मंडलों में विभिन्न स्थानों पर छोटे-बड़े तालाबों की साफ-सफाई एवं रख-रखाव के कार्य किए गए तथा नए तालाबों, कंटूर ट्रैच, बांधों, दीवारों व भूस्खलन को रोकने के लिए चेक डैम (Check Dam), डंगे व दीवारों का निर्माण इत्यादि किया गया।
इस योजना का उद्देश्य धरती पर अधिक समय तक पानी का ठहराव है, जिससे जल स्तर में वृद्धि होगी। इसके लिए उपरोक्त निमार्ण कार्यों के अतिरिक्त वनस्पति की स्थिति में सुधार के कार्य भी किए गए हैं, जिसमें पौधरोपण, विषेशतौर पर फलदार पौधों के रोपण कार्य तथा वनों में साफ-सफाई तथा वन अग्नि रोकथाम के उपायों पर भी व्यय किया गया है। योजना के तहत वन विभाग ने वर्ष 2020-21 में 2.76 करोड़ रुपये व्यय किए गए, जिसमें लगभग 110 छोटे-बड़े तालाब, 600 विभिन्न प्रकार के चेक डैम व चेक वॉल, 12 हज़ार कन्टूर ट्रैंच के साथ-साथ पौधरोपण (Plantation) इत्यादि के कार्य शामिल हैं।
आगामी वर्षों में योजना के तहत अन्य वन मंडलों को भी शामिल किया जाएगा तथा जल एवं मृदा संरक्षण के कार्यों के अतिरिक्त पौधरोपण जैसे कार्यों पर बल दिया जाएगा। पर्वतों में जल धारा की निरंतरता को बनाए रखने में ऊंची चोटियों पर बर्फ तथा वनों में जल संरक्षण की आवश्यकता है। इस दिशा में जलवायु परिवर्तन को रोकने अथवा उसकी गति को धीमी करने की आवश्यकता है, जो पौधरोपण, वन संरक्षण तथा वनों की स्थिति में सुधार जैसे कार्यों के द्वारा किया जा सकता है। वनों में मृदा एवं जल संरक्षण (Water Conservation) कार्यों से भी वनों के आवरण में सुधार लाया जा सकता है। इन सभी कार्यों के द्वारा भूमि में जल को अधिक समय तक रोकर, जल स्तर को बढ़ाया जा सकेगा तथा प्राकृतिक स्रातों के जीर्णोद्धार से स्थानीय लोगों को सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता एवं निरंतरता को भी बनाया जा सकेगा।
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