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हिमाचल हाईकोर्ट ने खारिज की एडवोकेट वेल्फेयर फंड अधिनियम में संशोधन से जुड़ी याचिका
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने अधिवक्ता कल्याण फंड अधिनियम (Advocate Welfare Fund Act) में संशोधन किये जाने की गुहार को लेकर दायर याचिका को ख़ारिज (Dismissed) कर दिया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश चन्द्र भूषण बारोवालिया की खंडपीठ ने प्रार्थी अधिवक्ता संजय मंडयाल द्वारा दायर याचिका को ख़ारिज करते हुए अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि जहां नियमों, निर्देशों और अधिनियम के प्रावधानों में विरोधाभास हो वहां पर अधिनियम के प्रावधानों को सर्वपरी माना जाएगा।
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प्रार्थी ने हिमाचल प्रदेश बार काउन्सिल की अधिवक्ता कल्याण फंड ट्रस्टी कमेटी द्वारा जारी उस निर्णय को चुनौती दी थी जिसके तहत हरेक अधिवक्ता को वकालतनामा दायर करने पर 10 रुपए के बजाये 25 रुपए की टिकट अनिवार्य किया गया था। प्रार्थी ने अदालत से गुहार लगाई थी कि प्रदेश बार काउन्सिल को आदेश दिए जाए कि वह अधिवक्ता कल्याण फंड अधिनियम में जरुरी संशोधन करे, ताकि हरेक अधिवक्ता जो अधिवक्ता कल्याण फंड में अपना योगदान कर रहा है उसे अधिवक्ता कल्याण फंड ट्रसटी कमेटी का सदस्य माना जाए। प्रार्थी ने आरोप लगाया था कि प्रदेश में हरेक वकील, अधिवक्ता कल्याण फंड में अपना योगदान कर रहा है जबकि इसका लाभ उन वकीलों के लिए ही सीमित है जो अधिवक्ता कल्याण फंड ट्रसटी कमेटी के सदस्य है।
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प्रार्थी ने दलील दी कि प्रदेश बार काउन्सिल ने इस विसंगति को दूर करने के लिए 27.11.2019 को अधिवक्ता कल्याण फंड के प्रावधानों में जरुरी संशोधन कर निर्णय लिया कि हरेक अभिवक्ता को वकालतनामें पर 10 रुपए के बजाये 25 रुपए की टिकट लगानी पड़ेगी। अदालत ने याचिका को ख़ारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि अधिवक्ता कल्याण फंड 1996 की धारा 17 में यह स्पष्ट किया गया है कि हरेक अधिवक्ता को अधिवक्ता कल्याण फंड ट्रसटी कमेटी का सदस्य बनने के लिए आवेदन करना होगा। अदालत ने कहा कि जहाँ नियमोंए निर्देशों और अधिनियम के प्रावधानों में निरोधाभास हो वहाँ पर अधिनियम के प्रावधानों को सर्वपरी माना जाएगा।