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अपने ही परिजनों द्वारा युवती को बंधक बनाए जाने के मामले में High Court के आदेश
शिमला। हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) ने जातिगत द्वेष के कारण अपने ही परिजनों द्वारा युवती को बंधक बनाए जाने के आरोपों को लेकर दायर याचिका का निपटारा करते हुए सरकार को आदेश दिए हैं कि वह युवती की स्वतंत्रता सुनिश्चित करे व उसे वांछित सुरक्षा प्रदान करे। याचिकाकर्ता युवक का आरोप था कि वह जिस युवती के साथ शादी करना चाहता है, उसे उसके परिजनों ने बंधक बना दिया है। बंधक बनाने की वजह जातिगत भेदभाव बताते हुए प्रार्थी ने लड़की की प्रत्यक्षीकरण व उसकी स्वतंत्रता बहाल करने हेतु हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट में पेश युवती ने कोर्ट को बताया कि उसके परिजन नहीं चाहते कि वह याचिकाकर्ता से विवाह करे। इसकी वजह केवल जातिगत भेद ही है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने सभी पक्षों की सुनवाई करने के पश्चात अपने फैसले में कहा कि जातिवाद के कारण अंतरजातीय विवाह (Inter Caste Marriage) का विरोध करना आध्यात्मिक एवं धार्मिक अज्ञानता का नतीजा है। स्वतंत्र विचार भारतीय परंपराओं का मौलिक रूप है।
जाति, लिंग, रंग, पंथ, वर्ग आदि के आधार पर नहीं होना चाहिए भेदभाव
कोर्ट ने कहा कि हालांकि कुछ लोग धर्म के नाम पर जातिगत भिन्नता को बनाए रखने के पक्षधर हैं और जातिवाद और इसके आधार पर भेदभाव को जारी रखना चाहते हैं। परन्तु वे अज्ञानतावश ऐसा करते हैं, क्योंकि ऐसी सोच धर्म के आधार व सच्चे सार के विरुद्ध हैं। यह सभी धर्मों का आध्यात्मिक आधार व धार्मिक संदेश (Religious Message) है कि भगवान हर जगह हर प्राणी में है और भगवान के समक्ष हर प्राणी बराबर है। इतना ही नहीं मान्यताओं के अनुसार भगवान ना केवल जीवित प्राणियों में है, बल्कि कण कण में भगवान है। इसलिए जाति, लिंग, रंग, पंथ, वर्ग या आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। कोर्ट ने भगवद्गीता जिसे भगवान का संदेश भी कहा जाता है, का उल्लेख करते हुए कहा कि भगवतगीता में भी यह कहा गया है कि जो मनुष्य भगवान के बनाए प्राणियों में भेदभाव करता है अथवा हर जगह भगवान की उपस्थिति को नहीं देखता है उसे कभी आत्मबोध व भगवान का आशीर्वाद प्राप्त नहीं होता।
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जाति आधारित भेदभाव ना केवल संविधान, बल्कि सत्य धर्म के भी विरुद्ध
धार्मिक मूल्यों के मूल स्रोत वेदों को भुलाकर कभी कभी स्मृतियों व पुराणों को आधार बनाकर जातिगत भेदभाव को प्रतिपादित किया जाता है। इसलिए वेदों में बताए मूल्यों व सिद्धान्तों के विरुद्ध कहीं भी जो कुछ जातिगत भेदभाव के बारे में लिखा गया है, उसे दरकिनार कर देना चाहिए चाहे वह पुराणों, स्मृतियों अथवा अन्य धर्मग्रंथों में ही क्यों ना कहा गया हो। वेदों में बिना किसी भेदभाव के समानता के सिद्धांत को आधार बनाकर साथ खाने, इकट्ठे रहने, साथ आगे बढ़ने व मिलकर काम करने की बात कही गई है, ताकि सबकी उन्नति व बराबर उत्थान हो सके। इसलिए जाति आधारित भेदभाव ना केवल संविधान के विरुद्ध है, बल्कि सत्य धर्म के विरुद्ध भी है। कोर्ट (Court) ने कहा कि शादी करना या किसी जायज कारण से शादी ना करना और शादी के लिए अपनी इच्छा से साथी चुनने का अधिकार हमारे भारतीय समाज में पुरातन काल से मान्यता प्राप्त अधिकार है।
कोर्ट ने सत्यवती व शांतनु और दुष्यंत व शकुंतला के विवाह का किया उल्लेख
अंतरजातीय विवाह करने की अनुमति प्राचीनकाल से रही है। परन्तु मध्यकाल की बुराइयों के चलते गलत धारणाएं उत्पन्न हो गईं जो हमारी सभ्यता व परंपराओं के उच्च मूल्यों व सिद्धान्तों पर हावी हो गईं। कोर्ट ने सत्यवती व शांतनु और दुष्यंत व शकुंतला के विवाह का उल्लेख करते हुए कहा कि यह अंतरजातीय विवाह के जाने माने उदाहरण रहे हैं। शादी के लिए इच्छा से साथी चुनने के अधिकार की प्राचीनकाल से लेकर मान्यता का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि एक राजा की पुत्री सावित्री उपमहाद्वीप भारत में अपनी इच्छा के वर की तलाश में घूमी और अंततः एक लकड़हारे सत्यवान को जीवनसाथी चुना और जिसे उसके पिता व समाज ने स्वीकार किया। इसी तरह एक राजा की पुत्री देवहूती ने शोधकर्ता ऋषि करद्म से विवाह किया जो ना कोई राजा था ना ही राजकुमार। उन्हें भी राजा व समाज ने स्वीकार किया।
भगवान कृष्ण व रुक्मणि के विवाह का भी किया उल्लेख
स्वेच्छा से साथी चुनने के अधिकार का एक उदाहरण कालिदास व विद्योत्तमा की शादी का भी है। कोर्ट ने स्वेच्छा से शादी करने का सबसे पुराना उदाहरण देते हुए कहा कि सत्ती ने अपने पिता राजा दक्षप्रजापति की इच्छा के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह रचाया। 5 हजार वर्ष से पुराने भगवान कृष्ण व रुक्मणि के विवाह का उल्लेख करते हुए कहा कि रुक्मणि का भाई उसकी शादी शिशुपाल से करवाना चाहता था जबकि रुक्मणि भगवान कृष्ण से शादी करना चाहती थी। इसलिए रुक्मणि ने भगवान कृष्ण को पत्र लिख कर उसे ले जाने व उसे अपनी पत्नी बनाने को कहा। जिसके पश्चात भगवान कृष्ण ने रुक्मणि को मंडप से उठा लिया था और उससे विवाह किया। ऐसा ही उदाहरण अर्जुन व सुभद्रा का है जिसमें सुभद्रा के परिजन उसका विवाह कहीं और करना चाहते थे, जबकि वह अर्जुन से शादी की इच्छुक थी। कोर्ट ने युवती को वांछित पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के आदेश जारी करते हुए कहा कि यदि इतिहास व पुरातन मूल्यों को किनारे भी रखा जाए तो भी आज हम जिस समाज में रह रहे हैं वह संविधान से संचालित है और यहां हर हालत में कानून का राज स्थापित होना है। कोर्ट ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड व सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के पश्चात सरकार को युवती की स्वतंत्रता व जानमाल की सुरक्षा सुनिश्चित करने के आदेश दिए।