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हिमाचल में घटिया दवाओं के उत्पादन पर हाईकोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब
शिमला। हिमाचल प्रदेश में घटिया दवाइयों (Low Quality Medicine) के उत्पादन पर राज्य हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है। अदालत ने सूबे में दवाइयों के परीक्षण की प्रयोगशाला न होने और दवाइयों के घटिया उत्पादन पर 29 अगस्त को सुनवाई निर्धारित की है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय औषधि नियामक और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने हिमाचल में निर्मित 12 दवा के नमूनों को घटिया घोषित किया है, जबकि एक नमूने को नकली पाया गया।
हिमाचल से घटिया घोषित की गई दवाओं में एस्ट्राजोल इंजेक्शन, एस्ट्रीज़ो टैबलेट, मिसोप्रोस्टोल टैबलेट, एमोक्सिसिलिन कैप्सूल, पैरासिटामोल ओरल सस्पेंशन, फिनाविव टैबलेट, पैंटोप्राजोल व डोमपेरिडोन कैप्सूल, रैंटिडिन हाइड्रोक्लोराइड टैबलेट और लेवोसेटिरिज़िन तथा इबुप्रोफेन टैबलेट शामिल हैं। जानवरों में जीवाणु संक्रमण के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एनरोफ्लॉक्सासिन इंजेक्शन भी सूची में शामिल है।
दवाओं की परीक्षण प्रयोगशाला ही नहीं
घटिया और नकली दवाइयों के निर्माता बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़, काला अंब के साथ-साथ पांवटा साहिब के औद्योगिक समूहों में स्थित हैं। वहीं, सूबे में दवाइयों की परीक्षण प्रयोगशाला (No Drug Testing Laboratory in Himachal) न होने पर कड़ा संज्ञान लिया है। वर्ष 2017 में सेंट्रल बैंक ने बद्दी में दवाइयों की परीक्षण प्रयोगशाला के निर्माण के लिए 30 करोड़ रुपये की राशि स्वीकृत की थी।
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जांच नहीं होने से दवाएं बन रही हैं घटिया
वर्ष 2014 में उद्योग विभाग की ओर से 3.50 करोड़ रुपये प्रयोगशाला के निर्माण के लिए खर्च किए गए हैं। लेकिन अभी तक इसे चालू नहीं किया गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत 30 करोड़ रुपये की राशि जारी की थी। आरोप लगाया गया है कि दवाइयों के परीक्षण के लिए प्रयोगशाला नहीं होने के कारण घटिया दवाइयों का उत्पादन किया जा रहा है।