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भगवान गणेश का जन्म मध्यकाल में होने के कारण इस समय को गणेश जी की स्थापना के लिए काफी शुभ माना जाता है। इस बार 13 सितंबर की मध्याह्न को गणेश पूजा का और स्थापना का समय 11:03 से 13:30 बजे तक है। गणेश चतुर्थी की पूजा की अवधि अनंत चतुर्दशी तक चलती है। इस वर्ष गणेश उत्सव 23 सितंबर तक चलेगा और रविवार को अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन होगा। यदि आप भी गणपति को घर में विराजित करना चाहते हैं तो जानिए पूजा की सही विधि और गणपति स्थापना का सही तरीका …
गणेश चतुर्थी पर पूजा के लिए जरूरी है कि बाजार से गणपति की एक नई प्रतिमा लाई जाए। यदि आप प्रतिमा स्थापित नहीं करना चाहते हैं तो एक साबुत पूजा सुपारी को गणपति स्वरूप मानकर उसे भी घर में स्थापित कर सकते हैं। प. दयानन्द शास्त्री के अनुसार पूजा घर पर भगवान गणेश की दो या उससे अधिक मूर्तियों को एक साथ नहीं रखना चाहिए। इससे अशुभ माना जाता है क्योंकि दो मूर्तियों की ऊर्जा आपस में एक साथ टकराने से अशुभ फल मिलता है। भगवान गणेश जी की मूर्ति का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। क्योंकि गणेश जी मुख की तरफ समृद्धि, सुख और सौभाग्य होता है। जबकि पीठ वाले हिस्से पर दुख और दरिद्रता का वास होता है। भगवान गणेश जी की मूर्ति को घर पर लाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि गणेश जी की सूंड बांईं तरफ होना चाहिए। ऐसी मान्यता है कि इस तरह की मूर्ति की उपासना करने पर जल्द मनोकामना पूरी होती है। पुराणों के अनुसार, गणेश जी की पीठ के दर्शन करना अशुभ फलदायी होता है। गणेश जी की पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। मान्यता है कि इसके दर्शन करने से व्यक्ति का दुर्भाग्य आता है।
पंशास्त्री ने बताया कि गणपति को घर में विराजने से पहले पूजा स्थल की सफाई कर लें। फिर एक साफ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर अक्षत रखें और उनके ऊपर गणपति को स्थापित करें। इसके बाद गणपति को दूर्वा या पान के पत्ते की सहायता से गंगाजल से स्नान कराएं। पीले वस्त्र गणपति को अर्पित करें या मोली को वस्त्र मानकर अर्पित करें। इसके बाद रोली से तिलक कर अक्षत लगाएं, फूल चढ़ाएं और मिष्ठान का भोग लगाएं। कीर्तन करें। प्रसाद में प्रतिदिन पंचमेवा जरूर रखें।
गणपति की चौकी के पास तांबे या चांदी के कलश में जल भरकर रखें। कलश गणपति के दाईं और होना चाहिए। इस कलश के नीचे चावल या अक्षत रखें और इस पर मौली अवश्य बांधें। गणपति के बाईं तरफ घी का दीपक जलाएं। दीपक को कभी भी सीधे जमीन पर न रखें और इसके नीचे भी चावल रखें। पूजा का समय निश्चित रखें। यदि आप माला जप करने का प्रण ले रहे हैं तो प्रतिदिन नियत समय पर उतनी ही माला का जप करें।
गणपति की स्थापना के बाद दाएं (सीधे) हाथ में अक्षत और गंगाजल लेकर संकल्प करें। कहें कि हम गणपति को इतने दिनों तक अपने घर में स्थापित करके प्रतिदिन विधि-विधान से पूजा करेंगे। संकल्प में उतने दिनों का जिक्र करें, जितने दिन आप गणपति को अपने घर में विराजना चाहते हों। जैसे, तीन, पांच,सात, नौ या 11 दिन।
प. दयानन्द शास्त्री ने बताया कि “ॐ गणेशाय नम:” का जप करते हुए स्थापित की गई गणपति प्रतिमा को प्रणाम करें और उनसे विनती करिए कि प्रभु हम इतने दिनों तक आपको प्रतिष्ठित करने विधि पूर्वक पूजा करना चाहते हैं। आप ऋद्धि-सिद्धि के साथ हमारे घर में विराजमान हों। आपकी पूजा के दौरान यदि हमसे कोई गलती हो जाती है तो कृपा कर हमें क्षमा करें और अपनी अनुकंपा हम पर बनाए रखें।
घर में शुभ-लाभ की वृद्धि और समृद्धि की प्राप्ति के लिए गणपति को प्रतिदिन 5 दूर्वा अर्पित करें। साथ ही पांच हरी इलायची और 5 कमलगट्टे एक कटोरी में रखकर भगवान के चरणों में रख दें। दूर्वा को प्रतिदिन बदलते रहें और इलायची तथा कमलगट्टों को पूजा के अंतिम दिन तक वहीं रखा रहने दें। पूजन संपन्न होने के बाद कमलगट्टों को लाल कपड़े में बांधकर घर के मंदिर में रख लें तथा इलायची को प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
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