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नवरात्र हिंदू धर्म में मनाए जाने वाले पवित्र पर्वों में से एक है, जिसे बड़ी श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। नौ दिन तक चलने वाला नवरात्र पर्व देवी दुर्गा को समर्पित है। इसके बाद दसवें दिन विजयदशमी या दशहरा मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र को सभी नवरात्रों में सबसे प्रमुख और महत्वपूर्ण माना जाता है, इसलिए इसे महा नवरात्र भी कहा जाता है। उत्तर भारत में इसे शारदीय नवरात्र कहा जाता है तो पश्चिम बंगाल और उससे सटे राज्यों में इसे दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा गुजरात में भी यह पर्व बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2018 में शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर से प्रारंभ हो रहे हैं जो 18 अक्टूबर, 2018 तक चलेंगे।
शास्त्रों में भी नवरात्र के दौरान कलश स्थापना का खास महत्व बताया गया है। इसके अनुसार कलश स्थापना (घटस्थापना) नवरात्र के पहले दिन शुभ मुहूर्त और सही समय में करनी चाहिए। माना जाता है सही समय में की गई कलश स्थापना से देवी शक्ति का आशीर्वाद मिलता है जबकि गलत समय में की गई कलश स्थापना का कोई लाभ नहीं मिलता। अमावस्या और रात्रि के समय कलश स्थापना करना निषेध होता है। कलश स्थापना के लिए सबसे शुभ समय प्रातःकाल का होता है जब पहले प्रहर में प्रतिपदा तिथि प्रबल हो। अगर ऐसा कोई मुहूर्त न मिले तो कलश स्थापना अभिजित मुहूर्त में भी की जा सकती है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग के दौरान कलश स्थापना करना शुभ नहीं माना जाता लेकिन अगर आपकी रीति रिवाजों में इस दौरान पूजा होती है तो आप उस हिसाब से पूजन कर सकते हैं। यहां हम आपको नवरात्रि के दौरान कलश स्थापना की सही विधि बताने जा रहे हैं …
जौ बोने के लिए मिटटी का पात्र, साफ़ मिट्टी, मिट्टी का एक छोटा घड़ा, कलश को ढकने के लिए मिट्टी का एक ढक्कन, गंगा जल, सुपारी, 1 या 2 रूपए का सिक्का, आम की पत्तियां, अक्षत / कच्चे चावल, मोली / कलावा / रक्षा सूत्र, जौ (जवारे), इत्र (वैकल्पिक), फुल और फुल माला, नारियल, लाल कपड़ा/ लाल चुन्नी, दूर्वा घास।
नवरात्रि में कलश स्थापना देवी-देवताओं के आह्वान से पूर्व की जाती है। कलश स्थापना करने से पूर्व आपको कलश और खेतरी को तैयार करना होगा जिसकी सम्पूर्ण विधि दी गई है …
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिश-वास्तु सलाहकार)
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