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कांगड़ा। एक तो अकेली जिंदगी, ऊपर से बुढ़ापा। 87 साल की उम्र में जब लोग नाती-पोतों से खेलने की उम्मीद करते हैं, हिमाचल की कौशल्या देवी को अकेली जिंदगी गुजारनी पड़ रही है। उन्हें रोज सुबह उठकर अपने जिंदा रहने का सबूत देना होता है।
वे अपने टूटे-फूटे मकान की खिड़की पर रात को सोने से पहले एक सफेद कागज लगा देती हैं। सुबह उठकर उन्हें उस कागज को हटाना पड़ता है। कागज को हटा हुआ देखकर पड़ोसी समझ जाते हैं कि कौशल्या देवी जिंदा हैं। यह रोज की कहानी है कांगड़ा के शाहपुर कब्से से 20 किलोमीटर दूर जलादी गांव की रहने वाली कौशल्या देवी की।
कौशल्या देवी के पति की मौत हो चुकी है। उनका 47 साल का बेटा बुधी सिंह 3 साल पहले मां को छोड़कर काम के सिलसिले में जो बाहर निकला कि अभी तक लौटकर ही नहीं आया।कौशल्या देवी की बेटी चंबा में ब्याही है। कौशल्या देवी जब भी बीमार पड़ती हैं तो गांव के लोग और पड़ोसी उनकी बेटी को बुला लाते हैं। कौशल्या अपने टूटे-फूटे मकान में ज्यादातर समय अकेले बिताती हैं। उम्र के साथ-साथ शरीर कमजोर होने लगता है और जुबान भी लड़खड़ाने लगती है। वह लड़खड़ाती आवाज में कहती हैं, ‘मैं अपने बेटे के लिए सबसे ज्यादा चिंतित हूं। मैं उसके बारे में आस-पास के लोगों से पूछती रहती हूं।’
आर्थिक मदद की उम्मीद
इस असहाय बुजुर्ग महिला के बारे में इसी साल अगस्त महीने में एक सामाजिक कार्यकर्ता संजय शर्मा ने फेसबुक पर लिखा था, ‘कौशल्या का घर बुरी स्थिति में है। उनके पड़ोसी ही उनके स्थायी रूप से मददगार हैं। मैं उम्मीद कर रहा हूं कि उन पर जिन लोगों ने ध्यान देना शुरू किया है उससे उन्हें कुछ आर्थिक मदद भी मिल सके।’ मुंबई निवासी फिल्ममेकर विवेक मोहन उनकी जिंदगी पर एक शॉर्ट फिल्म बनाने की सोच रहे हैं। फिल्म का नाम होगा-बस स्टॉप।
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