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पुणे (महाराष्ट्र) से 110 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम की सह्याद्रि पर्वत माला में मौजूद ‘भीमाशंकर मंदिर’ भीमा नदी के किनारे स्थित है। शिव पुराण में वर्णित 12 प्रमुख ज्योतिर्लिगों में भीमाशंकर का स्थान छठा है। यह ज्योतिर्लिंग मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शंकर (Lord Shiva) ने कुंभकर्ण के पुत्र भीमेश्वर का वध किया था। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को समस्त दु:खों से छुटकारा मिल जाता है। यहीं से भीमा नदी भी निकलती है। यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि (Mahashivaratri) और हर महीने पड़ने वाली शिवरात्रि के मौके पर भक्तों की भारी संख्या में दर्शन के लिए आते हैं। 3,250 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर अत्यंत पुराना और कलात्मक है यहां की मूर्तियों से निरंतर पानी गिरता रहता है। मंदिर के पीछे दो कुंड भी हैं।
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शिव पुराण (Shivpurana) में लंका के राजा रावण के भाई कुंभकर्ण के बेटे के अत्याचारों और उसके संहार की एक कथा है। कुंभकर्ण के पुत्र भीमा का जन्म अपने पिता की मृत्यु के बाद हुआ था। बचपन में उसे इस बात का आभास नहीं था कि भगवान राम ने उसके पिता का वध किया है। भीमा जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ उसे इस बात का पता लगा। बदले की भावना में वह जलने लगा और अपने पिता की हत्या का बदला लेने का प्रण किया। उसे पता था कि राम से युद्ध कर जीतना आसान नहीं है इसलिए उसने कठोर तपस्या की और ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने उसे विजयी होने का वरदान दिया। इसके बाद भीमा ने अपनी असुर शक्ति का इस्तेमाल कर लोगों को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। उसके अत्याचार से सिर्फ मानव ही नहीं देवतागण भी त्रस्त हो गए। चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई। अंततः देवताओं ने भगवान शिव से मदद की गुहार की। भगवान शिव ने देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्त कराने का वादा किया और स्वयं उसका संहार करने का निर्णय लिया।
महादेव ने जिस स्थान पर भीमा का वध किया वह स्थान देवताओं के लिए पूजनीय बन गया। सभी ने भगवान शिव से उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में प्रकट होने की प्रार्थना की। भगवान शंकर ने देवताओं की यह अर्जी भी मान ली और उसी स्थान पर शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए तभी से इस स्थान को भीमाशंकर के नाम से जाना जाता है।
भीमाशंकर मंदिर नागर शैली की वास्तुकला (Architecture) से बनी एक प्राचीन और नई संरचनाओं का समिश्रण है। इस मंदिर से प्राचीन विश्वकर्मा वास्तुशिल्पियों की कौशल श्रेष्ठता का पता चलता है। इस सुंदर मंदिर का शिखर नाना फड़नवीस द्वारा 18वीं सदी में बनाया गया था। कहा जाता है कि महान मराठा शासक शिवाजी ने इस मंदिर की पूजा के लिए कई तरह की सुविधाएं प्रदान की। नाना फड़नवीस द्वारा निर्मित हेमादपंथि की संरचना में बनाया गया एक बड़ा घंटा भीमशंकर की एक विशेषता है।
अगर आप यहां जाएं तो आपको हनुमान झील, गुप्त भीमशंकर, भीमा नदी की उत्पत्ति, नागफनी, बॉम्बे प्वाइंट, साक्षी विनायक जैसे स्थानों का दौरा करने का मौका मिल सकता है। भीमशंकर लाल वन क्षेत्र और वन्यजीव अभयारण्य द्वारा संरक्षित है जहां पक्षियों, जानवरों, फूलों, पौधों की भरमार है। यह जगह श्रद्धालुओं के साथ-साथ ट्रैकर्स प्रेमियों के लिए भी उपयोगी है। यह मंदिर पुणे में बहुत ही प्रसिद्ध है। यहां दुनिया भर से लोग इस मंदिर को देखने और पूजा करने के लिए आते हैं। भीमाशंकर मंदिर के पास कमलजा मंदिर है। कमलजा पार्वती जी का अवतार हैं। इस मंदिर में भी श्रद्धालुओं की भीड़ लगती है। भीमशंकर से कुछ ही दूरी पर शिनोली और घोड़गांव है जहां आपको हर तरह की सुविधा मिलेगी। यदि आपको भीमशंकर मंदिर की यात्रा करनी है तो अगस्त और फरवरी महीने की बीच जाएं।
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