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मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोष काल में सती अनसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था। भगवान दत्तात्रेय को त्रिदेव यानी ब्रह्म, विष्णु और महेश का स्वरूप माना गया है। दत्तात्रेय की गणना भगवान विष्णु के 24 अवतारों में छठे स्थान पर की जाती है। भगवान दत्तात्रेय महायोगी और महागुरु के रूप में भी पूजनीय हैं। दत्तात्रेय एक ऐसे अवतार हैं, जिन्होंने 24 गुरुओं से शिक्षा ली। भगवान दत्तात्रेय की जयंती इस बार 11 दिसंबर को है। दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी, अवधूत और दिगंबर रहे थे। मान्यता है कि वे सर्वव्यापी हैं और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले हैं। दत्तात्रेय की उपासना में अहं को छोड़ने और ज्ञान द्वारा जीवन को सफल बनाने का संदेश है।
ऐसे करें पूजा
मार्गशीर्ष की पूर्णिमा पर प्रात: काल उठें और नित्यकर्म के बाद स्नान करें। स्नान के बाद सफेद वस्त्र धारण करें, फिर आचमन करें। इसके बाद भगवान का ध्यान करें और व्रत का संकल्प लें। अब ॐ नमोः नारायण कहकर, श्री हरि का आह्वान करें। इसके बाद भगवान को आसन, गंध और पुष्प आदि अर्पित करें। पूजा स्थल पर वेदी बनाएं और हवन के लिए उसमे अग्नि जलाएं। इसके बाद हवन में तेल, घी और बूरा आदि की आहुति दें। हवन समाप्त होने पर सच्चे मन में भगवान का ध्यान करें। व्रत के दूसरे दिन गरीब लोगों या ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दान-दक्षिणा दें।
भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा को लाल कपड़े पर स्थापित करने के बाद चंदन लगाकर, फूल चढ़ाकर, धूप, नैवेद्य चढ़ाकर दीपक से आरती उतारकर पूजा करें। इनकी उपासना तुरंत प्रभावी हो जाती है और शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है। साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा, दिव्य प्रकाश के द्वारा या साक्षात उनके दर्शन से होता है। विश्वास किया जाता है भगवान दत्तात्रेय बड़े दयालु हैं।
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