-
Advertisement

देश में राजद्रोह कानून बेहद जरूरी, एंटी नेशनल लोगों पर लगाम कसने में मिलती है मदद
Last Updated on June 2, 2023 by sintu kumar
हमारे देश में पिछले कुछ दशकों में नागरिकों पर राजद्रोह के मामलों की संख्या में काफी इजाफा हुआ है। लॉ कमीशन (Law Commission) का कहना है कि राजद्रोह कानून को बनाए रखने की जरूरत है। लॉ कमीशन ने देशद्रोह कानून की धारा 124ए बनाए रखने की सिफारिश की है। साथ ही विधि आयोग ने कानून में स्पष्टता लाने के लिए भी सुझाव दिए हैं। आज हम आपको बताएंगे कि देश में देशद्रोह कानून होना क्यों जरूरी है।
विधि आयोग ने अंग्रेजों के बनाए 153 साल पुराने इस देशद्रोह कानून को बनाए रखने की वकालत करते हुए कहा कि इस कानून को हटाने के कई गंभीर दुष्परिणाम हो सकते हैं। उनका कहना है कि ऐसा करना देश की सुरक्षा और अखंडता के लिए चिंताजनक हो सकता है।
किए जाएं कुछ बदलाव
विधि आयोग का कहना है कि इस कानून में कुछ बदलाव किए जाएं ताकि इसे लगाए जाने की स्थिति और अन्य चीजों के बारे में स्पष्ट समझ विकसित हो सके।
हुए कई मामले दर्ज
बता दें कि देश में राजनीतिक नेताओं, शिक्षाविदों, आम नागरिकों और कई कार्यकर्ताओं की राजद्रोह कानून (Sedition Law) के तहत गिरफ्तारी हुई है। इसके अलावा पत्रकारों और मीडिया घरानों पर भी इस कानून के तहत राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया है।
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, साल 2014 से देशभर में राजद्रोह के कुल 399 मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें 2019 में 93 मामले दर्ज हुए, जो कि सबसे ज्यादा थे। जबकि, 2020 में 73 और 2021 में 76, मामले दर्ज हुए थे। वहीं, 2016 से 2020 के बीच राजद्रोह के 322 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 144 में चार्जशीट फाइल हुई। इसके अलावा 23 मामलों को झूठा माना गया और 58 मामले सबूत ना होने के कारण बंद कर दिए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
गौरतलब है कि देश में राजद्रोह कानून को लेकर नागरिक समाज और सुप्रीम कोर्ट में हमेशा ही बहस होती रहती है। सुप्रीम कोर्ट देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर चिंता भी जाहिर कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अब राजद्रोह क्या है और क्या नहीं इसको परिभाषित करने का समय आ गया है।
कानून बनाए रखने की जरूरत
लॉ कमीशन ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसमें उन्होंने बताया है कि क्यों राजद्रोह कानून को बनाए रखने की जरूरत है। लॉ कमीशन का कहना है कि किसी कानून या संस्थान को औपनिवेशिक बताना अपने आप में पुरातन नहीं हो जाता है। अगर किसी कानूनी प्रावधान का ऑरिजन औपनिवेशिक है तो इसे सिर्फ इस आधार पर हटाना सही नहीं हो सकता है।

स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ किया गया इस्तेमाल
लॉ कमीशन ने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि राजद्रोह का अपराध औपनिवेशिक विरासत है, जो उस जमाने पर आधारित हैं जब इसे लागू किया गया। उन्होंने कहा कि कानून का इतिहास भी बताता है कि इसे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि अगर इस आधार पर देखा जाए तो पूरी भारतीय कानून प्रणाली का ढांचा ही औपनिवेशिक विरासत है।
अलग-अलग है वास्तविकता
लॉ कमीशन का कहना है कि आईपीसी की धारा 124 ए को सिर्फ इस आधार पर नहीं हटाया जा सकता है कि कई सारे देशों में ऐसा किया गया है। दरअसल, हर देश की वास्तविकता अलग-अलग है। दुनिया के कई देशों में राजद्रोह कानून में बस दिखावटी बदलाव के लिए गए हैं।
एकता और अखंडता के लिए
आईपीसी की सेक्शन 124 ए के तहत राष्ट्र-विरोधी और अलगाववादी तत्वों से निपटा जाता है। इस कानून के जरिए सरकार को हिंसक और अवैध तरीके के जरिए सरकार गिराने वाले तत्वों से निपटने की शक्ति मिलती है। इस कानून के जरिए देश की अखंडता और एकता की रक्षा सुनिश्चित होती है।
बोलने की आजादी को करता है प्रतिबंधित
आईपीसी की धारा 124ए बोलने की आजादी को कुछ हद तक सीमित करने का काम करती है। जबकि, संविधान में आर्टिकल 19(2) के तहत बोलने की आजादी है।
जरूरत नहीं होती खत्म
आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए विशेष कानून और आतंकवाद विरोधी कानून का इस्तेमाल अपराधों को रोकने के लिए किया जाता है। ऐसे ही आईपीसी की धारा 124 ए (IPC Section 124A) कानून द्वारा स्थापित लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हिंसक, अवैध और असंवैधानिक रूप से उखाड़ फेंकने से रोकने की कोशिश करती है।
यह भी पढ़े:बृजभूषण पर दो एफआईआर, छेड़छाड़ सहित कई गंभीर आरोप