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लंका दहन के साथ कुल्लू दशहरा संपन्न
Last Updated on October 31, 2020 by Sintu Kumar
कुल्लू। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का आज समापन हो गया। सात दिन तक चले इस उत्सव में लंका दहन की प्राचीन परंपरा निभाई गई और इसी के साथ उत्सव का समापन किया गया। इस साल कोरोना का साया इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्सव पर देखने को मिला। जहां दशहरा उत्सव में सैंकड़ों देवी देवता भगवान रघुनाथ के दरबार पहुंचते थे वहीं इस बार केवल पंरपरा ही निभाई गई। बेशक प्रशासन की ओर से सात देवताओं को न्योता दिया गया था लेकिन कुछ देवता बाद में ढालपुर पहुंचे और न बुलाले के लिए अपनी नाराजगी भी जताई।
आज समापन अवसर पर भगवान रघुनाथ की रथयात्रा में 1 दर्जन देवी देवता शामिल हुए। अस्थाई शिविर से भगवान रघुनाथ लाव लश्कर के साथ रथ में सवार हुए विधिवत पूजा अर्चना के साथ लंका दहन के लिए माता हिंडिंबा की अगुवाई में बड़ी संख्या में श्रद्वालुओं ने भाग लिया। माता हिंडिंबा व राज परिवार के सदस्यों ने ब्यास के तट पर लंका दहन की परंपरा का निर्वहन किया। इसके बाद देवी देवताओं ने भगवान रघुनाथ से विदाई ली। रथ मैदान से भगवान रघुनाथ पालकी में सवार होकर रघुनाथपुर अपने मंदिर लौटे।
भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह के अनुसार दशहरा सभी परंपराओं को निभाया गया है और लंका दहन से पहने खड़की जाच होती है। जिसके बाद देवमहाकुंभ में लंका दहन के लिए रथयात्रा के साथ लंका दहन होगा। गौर रहे कि पूरे देश में कुल्लू दशहरा उत्सव में रावण के पुजले नहीं जलाए जाते यहां पर लंका दहन की प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया जाता है।