- Advertisement -
ऋषि महाजन/नूरपुर। उप मंडलीय सरकारी अस्पताल कहने को तो जोनल अस्पताल (Hospital) है व उसे 200 बिस्तर का दर्जा मिला हुआ है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाएं देने की जगह रेफरल अस्पताल बनकर रह गया है। अस्पताल (Hospital) में अभी भी भारी कमियों के चलते लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, जिसके चलते उन्हें निजी अस्पतालों में भारी भरकम खर्च कर स्वास्थ्य सेवा का लाभ लेने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
ऐसा ही एक मामला रिट पंचायत से सामने आया है। रिट पंचायत की एक महिला को डिलीवरी के लिए रात एक बजे अस्पताल लाया गया। अस्पताल पहुंचने पर जवाब मिला कि उक्त अस्पताल में न तो डॉक्टर मौजूद हैं और न ही डिलीवरी में प्रयुक्त होने वाले उपकरण हैं। वह मरीज को किसी अन्य जगह ले जाएं।
इसके बाद परिजनों ने महिला को पठानकोट (Pathankot) ले जाने का मन बनाया और अस्पताल (Hospital) प्रशासन से एंबुलेंस मुहैया करवाने के लिए कहा, लेकिन एंबुलेंस (Ambulance) की सेवा भी नहीं मिल पाई। इसके बाद परिजन किराए पर गाड़ी कर महिला को पठानकोट (Pathankot) ले गए। अस्पताल में तैनात नर्सों ने ही डिलीवरी को सफलता से अंजाम दिया। परिजनों ने मामले की लिखित शिकायत सरकार को भेजी है। शिकायत में कहा गया है कि अगर पठानकोट को निजी अस्पताल में नार्मल डिलीवरी नर्सें करवा सकती हैं तो नूरपुर अस्पताल में क्यों नहीं।
अगर अस्पताल के रेफर का सर्टिफिकेट ही लेना हो तो फिर इतने बड़े अस्पताल का क्या औचित्य रह जाता है। नूरपुर अस्पताल (Nurpur Hospital) के एसएमओ (SMO) डॉ. दिलवर से जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि वह छुट्टी पर हैं और इस विषय पर उक्त समय ड्यूटी में तैनात कर्मियों से पूछताछ की जाएगी।
- Advertisement -