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मंडी। हर कोई संस्कृति को सहेजने की बात करता है पर धरातल पर क्या ऐसा है भी। हम यहां बात कर रहे हैं पत्तलों की, इस परंपरा को फिर से पुनर्जीवित करने का वक्त आ गया है। आधुनिकता की चकाचौंध में हम कहीं ना कहीं हिमाचल की संस्कृति के इस अभिन्न अंग को भूल चुके थे, पर इस बीच प्रदेश सरकार ने जैसे ही थर्मोकोल पर पाबंदी की बात कही तो पत्तल का काम करने वालों को भी आस जगी।
यह वहीं पत्तल हैं जिसमें हिमाचली धाम को परोसा जाता रहा, पर बीच में इसका चलन ही खत्म हो गया था। हर समारोह में थर्मोकोल से बनी पलेट इस्तेमाल की जाने लगी थी। अब एक बार फिर से पत्तल की मांग सामने आने लगी है, जिससे लग रहा है कि हिमाचली संस्कृति के इस अभिन्न अंग के पुनर्जीवित होने के दिन आ चुके हैं।
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