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बर्फ फिर गिरने लगी थी, काम्या ने एक नजर पहाड़ों पर डाली। अब तक सारे ही पहाड़ सफेद हो चुके थे, पर अब बर्फ धीरे -धीरे नीचे उतर रही थी। घर की ऊपरी मंजिल में खिड़की के पास बैठी काम्या ने जलती हुई आग में दो लकड़ियां और डालीं फिर किताब पढ़ने लगी। यह एक खूबसूरत सी कॉटेज थी, जिसके दोनों तरफ बरामदे थे और लाल रंग की ढलवां छत थी। काम्या ने हाल ही में यह घर एक बुजुर्ग दंपति से खरीदा था, जो अपने बेटे के पास विदेश चले गए थे। हालांकि उसका काफी पैसा इसमें लग गया था, पर यह घर उसे पसंद था। इस खिड़की के पास बैठी वह अकसर पहाड़ों को देखा करती थी या फिर कोई किताब पढ़ा करती थी। जाने क्यों पूरे घर में सिर्फ यह कमरा उसे सबसे अपना और प्यारा लगता था। घर में बिजली थी, पर इस कमरे में वह हमेशा लैंप जलाती थी। ऊपर स्लेट की छत और लैंप की रोशनी… जब चाहे तेज कर लो और जब चाहे इतना धीमा कर लो कि रोशनी एक दम जुगनू हो जाए। उसका ज्यादातर वक्त यहीं गुजरता था।
लकड़ी की सीढ़ियों पर आहट हुई और एक हाथ कॉफी के कप के साथ ऊपर आया। गोमा की आदत है, वह पूरी सीढ़ियां नहीं चढ़ती, बस तीन सीढियां चढ़कर उसके हाथ में कप थमा जाती है।
-गोमा, वे दोनों क्या कर रही हैं ?
-केक बना रही हैं। कह रही थीं कि कल आपकी बर्थ-डे है।
काम्या को हंसी आ गई… उसे याद भी नहीं था, पर उसकी सहेलियों को याद था। नया घर लेने के बाद उसने अपनी दोस्तों के साथ गैट-टु-गैदर करने की सोची थी और उन्हें बुला लिया था। हालांकि उन्हें मिले काफी वक्त गुजर गया था, पर फोन से वे एक-दूसरे के संपर्क में थीं। केसर और कार्नेलिया सुबह आ गई थीं, शाम तक कालिंदी के आने का तय था। यहां पहाड़ बहुत ऊंचे थे और मई-जून के महीने में भी बादल घिरे रहते थे। पहाड़ की काफी ऊंचाई पर एक मंदिर था जिसकी हवा में लहराती पताका यहां से दिखाई देती थी।
“यह गुणा माता का मंदिर है।” उसके पूछने पर गोमा ने बताया था।
“लोग वहाँ तक जाते कैसे हैं?”
“पहाड़ी रास्ता है। पैदल चले जाते हैं।”
देर तक इस बात पर सोचती रह गई थी। मनुष्य की आस्था उसे किसी भी ऊँचाई पर ले जा सकती है और यह मंदिर इसका प्रमाण था। शाम तक कालिंदी भी आ गई। अब वे चारों साथ थीं – काम्या, केसर, कालिंदी और कार्नेलिया। इनके ग्रुप को कालेज में फोर के’ज के नाम से पुकारा जाता था। वे शोखी में इतनी तेज थीं कि लड़के उन्हें फोर के’ज की जगह चार का पिंजरा कहते थे।
“सो फोर के’ज आर हेअर अगेन…” कालिंदी खिलखिलाई।
सबने मिलकर रात का डिनर तैयार किया। खाना खाने के बाद वे बेडरूम में आ गईं। गोमा उनके बिस्तर लगाकर घर जा चुकी थी। इस कमरे में हीटर की हल्की गर्माहट थी। रात के साढ़े दस बज रहे थे पर किसी की आँखों में नींद न थी।
“क्यों न हम स्पिन-बाटल गेम खेलें… घर में बीयर की बोतल होगी? कार्नेलिया ने चहक कर कहा।
“मैं बीयर पीती हूं क्या?” काम्या ने आंखें तरेरीं।
“हर्ज़ ही क्या है… इतनी तो ठंडक पड़ती है यहां। फिर यह तो वैसे भी लेडीज ड्रिंक में आती है।” कहते हुये उसने मेज पर बिछा टेबल-क्लाथ हटा दिया।
“एक मिनट!” काम्या ने कहा। “जब मैंने यह घर खरीदा था तो एक बोतल देखी थी। मैंने फेंकी नहीं है। साथ ही एक और चीज मिली थी मुझे।” वह आलमारी खोल कर दोनों ही चीजें उठा लाई। उसके हाथ में चांदी की एक कलात्मक संदूकची थी।
“यह चांदी का बाक्स है…” कालिंदी ने ध्यान से देखते हुये कहा।
“मेरा ख्याल है कि इस घर के मालिकों को भी इसकी याद नहीं थी। यह आलमारी के एक कोने में छिपा हुआ सा था। मैंने भी इसे काफी दिनों बाद ही देखा।”
“खेल शुरू करते हैं… पर खेल की शर्त…?” याद रखो ये ट्रुथ एंड डेअर का खेल है। कालिंदी के चेहरे पर शरारती मुस्कान थिरक गई।
“खेल की शर्त यह है कि जो भी बोतल के निशाने पर होगा, वह बिल्कुल ईमानदारी के साथ अपने प्यार के बारे में बतायेगा…।” केसर इतनी देर बाद बोली थी।
कागज की पर्चियों पर उन्होंने अपने नाम लिखे, तारीख डाली और तह करके वहीं एक तरफ रख दिए। यह एक अघोषित और बेहद निजी दस्तावेज़ था, जो इस बात का गवाह था कि उस रात उस कमरे में कितने ही राज़ खुलने थे और फिर वहीं उन्हें दफ़न भी हो जाना था।
“हमारी शर्त याद रखना, झूठ किसी का भी नहीं चलेगा। बड़े से बड़ा सच यहीं कहना है, प्यार का सच।” केसर मुस्कुराई।
“ज़रूरी नहीं है कि हर लड़की ने मुहब्बत की ही हो…” कालिंदी ने तर्क रखा।
“यस डियर… लड़कियां बिना प्यार किये जी ही नहीं सकतीं। प्यार उनकी ज़िंदगी का अहम हिस्सा होता है। मेरा ख्याल है सब की ज़िंदगी का, वरना ज़िंदगी ही क्या…?”
खेल शुरू हुआ और बोतल का रुख सीधे केसर की ओर गया।
“या अल्लाह!” केसर का चेहरा ज़र्द था। उसकी आंखें बंद हो गईं। पहले चेहरे पर एक पीड़ा झलकी और फिर दृढ़-निश्चय का भाव आ गया। उसने आंखें खोल दीं… फिर धीरे से कहा, “मैं केसर; अपनी मुहब्बत के बारे में सच कहूंगी और सच के सिवा कुछ नहीं कहूँगी। हम आज पूरे सात सालों बाद मिल रहे हैं। इसलिये प्यार की अदालत में, मैं वह सब कुछ कहूंगी जो मेरे साथ गुज़रा।”
“शहबाज़ की और मेरी अम्मी सगी बहनें थीं। अपनी मर्ज़ी से उन्होंने हमारी सगाई तय कर दी। मेरा कालेज छूटते ही सगाई हो गई।”
“वेरी सिंपल! इस कहानी में कोई दम नहीं…” कालिंदी ने सांस खींची।
“कहानी तो अब शुरू हुई है। सगाई के बाद मेरे और शहबाज़ के बीच नज़दीकियां बढ़ीं और तारों-फूलों की राह पर चलते हुये हम कब एक-दूसरे के बेहद करीब आ गये, पता ही नहीं चला। अचानक ही एक दिन मैंने पाया कि मैं प्रैगनेंट थी। मैं और शहबाज़ दोनों ही घबरा गये। उधर, जब तक हम कुछ कहते, दोनों बहनों ने लड़ाई कर ली और सगाई तोड़ दी। वे एक-दूसरे का मुंह भी देखने को तैयार न थीं। वक़्त काफी निकल गया था। अबार्शन हो नहीं सकता था। तय था कि उस बच्चे ने दुनिया में आना ही था।”
“फिर…?” तीनों ने एक साथ पूछा।
“इस समय मैं गर्ल्ज इंटर कालेज में लेक्चरर हूं। मेरे साथ एक लड़की रुकैया है जो मुझे आपा कहती है। वह नहीं जानती कि मैं उसकी मां हूं…। वह क्या, कोई भी नहीं जानता।”
“और शहबाज़…?” काम्या ने आंखें उठाईं।
“वह महीने में एक बार आकर हमसे मिल जाता है। उसका कहना है कि वह मुझे तब घर ले जायेगा, जब उसकी मां नहीं रहेगी…। यह अज़ीब सी बात है कि मैं बीवी हूं, पर बीवी नहीं हूं और एक प्यारी सी बच्ची की मां हूं, फिर भी मां नहीं हूं। मेरे पास रिश्ते तो हैं पर उनके नाम छिन गये हैं।”
अगली बार बोतल ने कालिंदी की ओर रुख कर लिया।
“तौबा! अब मेरी शामत आई…” वह हंस दी।
“फ़िक्र मत कर, तेरा राज़ इस कमरे से बाहर नहीं जायेगा…” कार्नेलिया होंठ दबा कर हंस दी।
“एक बड़े घर में मेरी शादी हुई है और मेरा एक बेटा भी है।”
“बेखौफ़ होकर बोल, कालिंदी! यहां तेरा कोई दुश्मन नहीं।” केसर ने उसे हिम्मत देने को उसके हाथ थाम लिये।
“मैंने कभी भी बड़े घर में शादी के ख़्वाब नहीं देखे। मेरे मन में एक बात ज़रूर थी कि जो भी मेरा पति हो, वह सच्चा इंसान हो। जब मैं हाईस्कूल में थी, तभी मेरी दोस्ती आकाशदीप से हो गई। वह अपने दादा-दादी के साथ रहता था। पिता मर चुके थे; पर मां कहां थी, इसका कोई ज़िक्र ही नहीं करता था। मेरी और दीप की दोस्ती अधिक बढ़ी तो एक दिन मां ने मुझे उसके घर जाने से मना किया।
उसी रात जब मां पापा से बातें कर रही थीं, मुझे दीप की ज़िंदगी के बारे में सब कुछ पता चल गया। पिता के मरने के बाद उसके घर वालों ने दीप की मां पर बेतरह ज़ुल्म ढाए और एक दिन उसे धक्के मार कर घर से बाहर निकाल दिया गया था। दरअसल वे उसका खर्चा नहीं उठाना चाहते थे। वे उससे वेश्यावृत्ति करवाना चाहते थे और वह करने को तैयार न थी। इसलिये उन्होंने दीप को छीन कर उसे दफा कर दिया था।”
“माई फुट…” कार्नेलिया भड़क उठी।
“जिस दिन दीप की ज़िंदगी का यह रहस्य पता चला, उसी दिन मुझे उससे प्यार हो गया। वह पढ़ने में बहुत अच्छा था और मैं चाहती थी कि उसकी मदद करूं। मैं जब भी उसके घर जाती, उसकी किताबें संभालती, कमरा ठीक करती और उसके पास बैठ उसे पढ़ता देखती रहती। वह गर्मियों की शाम थी… हम दोनों दरवाजे की चौखट के पास खड़े थे। दीप ने हौले से मेरा हाथ थामा था…”तू कालिंदी है न! पर जब हम शादी करेंगे तो मैं तेरा नाम नीलगंगा रखूंगा।’
’खूबसूरत नाम है। कहां मिला तुम्हें?’
’एक बस पर लिखा देखा था, नीलगंगा एक्सप्रेस!’ वह शरारत से हंसा था।
’तो मैं तुम्हें बस जैसी दिखाई देती हूं….’ कहकर मैं उसे मारने दौड़ी थी कि तभी मेरे पापा ने उसे देख लिया था। इसके बाद ही दीप मुझसे छिन गया। हमारे सपने दिल में ही दफन हो कर रह गये। मेरी शादी हुई… सब कुछ नार्मल ही था, पर हैरत तो मुझे तब हुई जब लवमेकिंग के वक़्त मैंने पति की जगह दीप का चेहरा देखा। वह वहां नहीं था, पर उसकी मौजूदगी थी। आज इतने साल गुज़र गये हैं… मैं उस चेहरे को हटा नहीं पाई हूँ… यह दोहरी ज़िंदगी मैं कितने सालों से जी रही हूं। एक ऐसा पति जो मुझे जी-जान से प्यार करता है, अगर उसे पता चले कि अंतरंग क्षणों में मेरे साथ वह नहीं, कोई और होता है तो…”
“सपने सिर्फ देखने के लिये नहीं होते, उन्हें सच कर लेना चाहिये। नहीं तो वे सारी ज़िंदगी का दर्द बन कर रह जाते हैं।” केसर ने धीरे से कहा।
“एक मिनट रुको, मैं काफी बना लाती हूँ।” कह कर काम्या किचन में चली गई। ठंड धीरे-धीरे बढ़ती जा रही थी, पर कमरे की गर्मी वैसी ही बरकरार थी। काफी और स्नैक्स के साथ खेल फिर शुरू हुआ। इस बार बोतल स्पिन हुई तो कार्नेलिया का नंबर आ गया।
“तो अब मेरा नंबर है…। फ्रेंड्स! मेरी कहानी बेहद सिंपल सी है, पर उसमें मेरा साहस भी है और एडवेंचर भी। यूनिवर्सिटी में मेरा दाखिला हुआ ही था कि उसी साल एक नाम सबकी ज़ुबान पर आ गया। डेरिक ने यूनिवर्सिटी में टॉप किया था। वह इतना खूबसूरत, शालीन और गंभीर था कि उसे मैंने ही प्रपोज किया।”
“तुमने…” केसर हंस दी। “डेअरिंग यार! मैंने सोचा था कि यह काम सिर्फ लड़कों का है।”
“यह सब इतना आसान नहीं था। डेरिक ऑरफनेज में रह कर पला-बढ़ा था… इटैलियन मिशनरी के अनाथालय में रहकर वह यूनिवर्सिटी का टापर बना और मेरा प्यार भी। डेरिक के पास मां-बाप का नाम नहीं था। मेरे घर वाले इस शादी के लिये तैयार न थे, इसलिये मैंने कोर्ट में शादी कर ली। अब मेरा एक बेटा है, पर मेरा जी चाहता है कि मैं डेरिक जैसे एक दर्जन बच्चे पैदा करूं और सबको अपना और डेरिक का नाम दूं।”
“अरे, इस देश पर रहम कर! इतने बच्चे तो तेरा डेरिक भी नहीं पाल पायेगा।” केसर जोरों से हंस पड़ी।
“हमारी कहानियां खत्म हुईं। अब तुम्हारी बारी है, काम्या!” कहते हुये कालिंदी ने बोतल काम्या के हाथ में थमा दी।
“मेरी कहानी अरेबियन नाइट्स की कहानियों से कम नहीं… तुम लोगों ने हिम्मत की है, वही हिम्मत लेकर मैं भी कहूंगी क्योंकि हम सभी जानते हैं कि आज की बातें सिर्फ आज की रात यहीं रह जाएंगी… पर कुछ भी कहने से पहले मैं एक बात पूछना चाहूंगी। क्या तुम सभी मेरी तरह महसूस करती हो कि जिसे हम प्यार करते हैं, उसके बिना जीने का दिल नहीं करता?”
“ऑफ कोर्स!” केसर ने कहा।
“पर अगर वही तुम्हें छोड़ कर चला जाए…?”
“ऐसा कैसे हो सकता है… और अगर ऐसा होता है तो वह प्यार कैसे हुआ?”
“मेरे साथ ऐसा ही हुआ है। मैंने अब तक शादी नहीं की, पर मैं ऐसा नहीं कह सकती कि मुझे कोई मिला ही नहीं। मुझे जब भी कोई अच्छा लगा, उससे मेरी दोस्ती गहरी हुई… कि वह मेरा हाथ छोड़ कर चला गया। इस तरह मेरी ज़िंदगी में तीन पुरुष आए। हर बार मैंने टूट कर प्यार किया और हर बार मेरे साथ ऐसे ही गुज़रा। इतना वक़्त गुज़र गया है, मैं न अपना पहला प्यार भूल पाई हूं, न आखिरी!”
“यानी एक कहानी में तीन कहानियां…” कार्नेलिया चहकी।
“पहला प्यार मुझे एक गुंडे से हुआ।”
“गुंडे से…?” उनकी आंखों में आश्चर्य था।
“हां, लोग उसे गुंडा ही कहते थे। वह अक्सर चौराहों पर मारामारी किया करता था… उसके सफेद कपड़े ही उसकी पहचान थे। नाम राजकुमार था और था भी बेहद खूबसूरत! उसे देख कर मैं अक्सर सोचा करती थी कि यह ऐसे गलत काम क्यों करता है। लोग उससे खौफ़ खाते थे… पर उसका नाम कभी किसी लड़की से नहीं जुड़ा। मैं तब हाईस्कूल में थी। स्कूल घर से काफी दूर था और जाड़ों में घर पहुंचते-पहुंचते अंधेरा हो जाता था। उस दिन भी मुझे बस देर से मिली थी। स्टाप पर उतर कर मैं थोड़ी दूर गई थी कि दीवार की आड़ से निकल कर दो बदमाशों ने मुझे पकड़ लिया। मेरे मुंह से घुटी-घुटी सी चीख निकली थी। उसी समय मैंने उसे आंधी की तरह आते देखा। उसे आता देख कर वे दोनों भाग गये। उसकी बांहों के घेरे में सुबकती मैं और मुझे सांत्वना देते उसके हाथ…। वह सुरक्षित मुझे मेरे घर तक छोड़ गया। उसी एक लम्हे में मुझे उससे प्यार हो गया। वह अच्छे घर का लड़का था और पढ़ने में भी अच्छा था। अचानक ही उसका सिलैक्शन बैंक में हो गया… और वह शहर से ही नहीं, मेरी ज़िंदगी से भी चला गया।”
“लौट कर उसने तेरे से बात नहीं की?”
“सवाल ही नहीं उठता था… मैंने ही उससे कहां कहा था कि मैं उससे प्यार करती हूं। एक साल तक मैं उसके जाने का आघात नहीं भुला पाई… आज भी कहां भूली हूं… किसी भी चौराहे से लगती किसी अंधेरी सड़क को देखती हूं तो लगने लगता है कि किसी तरफ से आ कर वह खड़ा हो जायेगा।”
“ये तो ट्रेजेडी हो गई यार…” कालिंदी ने सांस भर कर कहा।
“उदयन जब मुझसे मिला, तब वह आजीविका के लिये संघर्ष कर रहा था। वह फर्स्टडिवीजनर था, पर तीन सालों से लगातार कोशिशें करने के बावज़ूद उसे कोई नौकरी नहीं मिली थी। घर से बेगैरत हुआ वह जब मरने की बातें करने लगा था, तभी उससे मेरी मुलाकात हुई। मैं हर रविवार जिला लाइब्रेरी जाती थी; वहीं मैंने उसे देखा था। हमारा रास्ता एक था, इसलिये हम कभी-कभी साथ ही लौटते थे।
धीरे-धीरे हम अच्छे दोस्त बन गये। मैं राज को भुला नहीं पाई थी; पर यह एकतरफा मोहब्बत थी, इसलिये इसका मर जाना स्वाभाविक भी था। राज मेरा हो सकता था पर हमें वक़्त ही नहीं मिला और अचानक ही सब कुछ खत्म हो गया। फिलहाल मैं उस समय यही चाहती थी कि उदयन अपनी परेशानी से बाहर निकल आए। जाड़ों का मौसम था। एक दिन लाइब्रेरी में हमें देर हो गई। अंधेरा कब उतर आया, पता ही नहीं चला। उस दिन वह मुझे घर छोड़ने चला आया। घर से एक मोड़ आगे, वह रुक गया था।
’काम्या! शायद जल्दी ही मुझे एक जगह नौकरी मिल जाएगी। तुम नहीं रहोगी तो मैं अकेला पड़ जाऊंगा। क्या तुम पूरी ज़िंदगी मेरे साथ रहना चाहोगी? मैं तुम्हारे मां-पापा से बात करूं?’
मैं उसका चेहरा देखती रह गई थी। बिना किसी अलंकारिक शब्दावली के उसने अपनी बात सामने रख दी थी। एक दम सीधा-सादा इंसान… जो आपकी ज़िंदगी संभाल कर रखे और आपको प्यार भी करे!
’सोचूंगी…’ मैंने कहा था। राज की यादें अभी भी मेरे साथ थीं। इतनी जल्दी उसे भुला पाना मेरे लिये नामुमकिन था, पर मुझे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी। एक ही महीने बाद उसकी नौकरी जियोलॉजिकल डिपार्टमेंट में लग गई और उसी समय उसकी शादी एक एस.डी.एम. लड़की से तय हो गई।”
“और तुमने कुछ नहीं कहा…?” कालिंदी के स्वर में नाराज़गी थी।
“उसके घर वालों के लिये उदयन अब कमाऊ बेटा था। वे उसके लिये ऊंची नौकरी वाली बहू चाहते थे, सो उन्हें मिल गई। उदयन ने यह सूचना मुझे दी और सॉरी बोल कर चला गया।”
“क्या अदा ठहरी… वाह!” केसर ने कहा।
“मैं समझ चुकी थी कि मैं उसकी मंज़िल तक ले जाने वाली सड़क थी, मंज़िल नहीं। सब कुछ मेरी आंखों के सामने अंधेरी रात की तरह गुज़र गया। मुझे लग रहा था कि मैं एक ऐसी जगह खड़ी हूं जहां रोशनी का एक कतरा भी मेरे लिये नहीं था। मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही थी कि मेरे जीवन में आए लोगों की परेशानियां तो खत्म हो गईं पर उन्होंने मंज़िल तक पहुंचने के लिये मुझे सीढ़ी क्यों बनाया?”
“इसलिये कि तुम्हें मदर टेरेसा बनने का शौक जो चढ़ा है। किसने कहा है कि दुनिया की सारी दुखी आत्माओं की काउंसलिंग करती फिरो?” केसर ने चिढ़ कर कहा।
“मेरी कहानी अभी खत्म नहीं हुई…” काम्या ने धीरे से खिड़की का पर्दा उठा दिया… बाहर पूरा चांद हंस रहा था।
“यह कितना सुंदर है…! इसके चारों ओर दोहरा सतरंगी घेरा है। अपनी ज़िंदगी में ऐसा खूबसूरत चांद मैंने पहले कभी नहीं देखा….” कार्नेलिया खिड़की से बाहर देखने लगी।
“यह हमारे बीच कहां से आ गया…. खिड़की बंद करो, नहीं तो यह हमारी कहानियों का गवाह बन जायेगा…” कहते हुए कालिंदी ने खिड़की बंद कर दी।
चारों हंस पड़ीं… प्यार की कहानियां.. इतनी अज़ीबो-गरीब कि शायद समाज, उन्हें किसी हालत में स्वीकार न करता। पर कहानियां तो थीं। वह भी झूठी नहीं, एकदम सच्ची कहानियां!
“जिस दिन उदयन मेरी ज़िंदगी से गया, उस दिन पहली बार मुझे लगा जैसे मुझे छला गया हो। मैंने बाद में तय कर लिया कि अब इस तरह का कोई रिश्ता मेरी ज़िंदगी में नहीं आएगा, पर यह भी नहीं हो पाया।”
“आहा! अब यह तीसरा प्रेम-प्रसंग…!” केसर शरारत से आंखें बंद कर हंस दी।
“मैं सीरियस हूं… हो सकता है कि मेरी तलाश ही पूरी न हुई हो… कोई इस लायक ही न हो, जो मेरी ज़िंदगी में हमेशा के लिये मेरा होता।
तीसरी बार मेरे फोन ने कमाल कर दिखाया। मेरा प्रोफेशन ऐसा है, जिसमें हर समय मेरा फोन से वास्ता पड़ता है। सुनने वालों का कहना है कि फोन पर मेरी आवाज़ बेहद मासूम सी लगती है और आवाज़ की इसी मिठास पर वह मर मिटा।
कोणार्क एक जर्नलिस्ट था… बहुत बड़ा नाम था उसका, पर डिप्रेशन में रहता था। पत्नी से अलग हुये उसे चार साल हो चुके थे। हमारा बहुत कम परिचय था, पर अकेलेपन के क्षणों में वह अक्सर मुझे फोन कर लेता था। अकेलेपन ने हमें एक-दूसरे के करीब कर दिया। हमने मिल कर जाने कितने सपने देख डाले और जब उन सपनों को हम सच करने वाले थे, तभी उसकी पत्नी लौट आई।”
“क्यों भला… क्या उसके यार-दोस्तों ने किनारा कर लिया था?” कालिंदी ने सवालिया नज़र उठाई।
“नहीं! पैसों की मज़बूरी ने उसे यह समझौता करने पर विवश किया। कोणार्क की अच्छी कमाई थी, जब कि उसकी जर्नलिस्ट पत्नी अपना ही खर्चा नहीं पूरा कर पा रही थी।
“और कोणार्क ने उसे आने दिया?”
“कोणार्क उसे भी रखना चाहता था और मुझसे भी दोस्ती बनाये रखना चाहता था। मैंने इनकार कर दिया। हमारी आखिरी बातचीत बड़ी अज़ीब सी थी।
’तुमने ऐसा क्यों किया?’ मैंने पूछा था।
’वह अब भी मेरी पत्नी है। चार सालों से हम दोनों ही वंचित रहे हैं।’
’तो वंचितों की इस दुनिया में मेरा क्या काम?’ कह कर मैं खुद उसकी ज़िंदगी से निकल गई। हैरत मुझे इस बात पर है कि मेरा हर प्यार जैसे सुबह का सूरज था… रोशन लकीरों से हो कर गुज़रता हुआ और हर अलगाव जैसे किसी गहरी अंधेरी गुफा की उदास शाम जैसा। एक बात ज़रूर है कि जो मुझे छोड़कर चले गये, उनसे मुझे कभी नफ़रत नहीं हुई। प्यार होता ही इतना खूबसूरत है कि आप उससे नफ़रत नहीं कर सकते।”
“तुम्हें बुरा तो लगा होगा?” कालिंदी ने धीमे से कहा।
“नहीं, मैंने सोच लिया था कि प्यार जैसी चीज मेरी किस्मत में नहीं थी। अब यह मेरी बनाई हुई दुनिया है, जिसमें मैं रहती हूँ। यह घर मैंने इसलिये पसंद किया था क्योंकि यहां सूरज डूबता नहीं बल्कि ऐसा लगता है जैसे पहाड़ के पीछे गिर गया हो।अगले दिन फिर वह सामने वाले पहाड़ के पीछे से किसी शरारती बच्चे की तरह झांकता हुआ ऊपर आ जाता है। वैसे, यह जगह एक निर्जन द्वीप की तरह ही है; पर मुझे पसंद है।”
“तो अब क्या तुम्हारी ज़िंदगी में कोई नहीं आएगा? हो सकता है कोई चौथा पुरुष…” कार्नेलिया ने हंस कर कहा।
“मेरा ऐतबार ही खत्म हो गया। टूट जाने के लिये तीन हादसे काफी हैं।” काम्या की आंखें सजल थीं।
“ना… आंसू नहीं, आज तेरा जन्मदिन है।” केसर ने उसे बांहों में समेट लिया।
मैंने कहीं एक कविता पढ़ी थी… मुझे अब तक याद है। आज की इस शाम के नाम…” कार्नेलिया ने कहा।
स्त्री इसलिये चरित्रवान होना चाहती थी
क्योंकि स्त्रियां चरित्रवान होती हैं
क्योंकि चरित्रवान होना स्त्री के लिये अनिवार्य है
स्त्री स्त्री थी, बार-बार भूल जाती थी
और प्यार कर बैठती थी
उनके चेहरों पर एक पीड़ा भरी मुस्कुराहट आ कर लौट गई। गेम खत्म हो चुका था… सबने उन पर्चियों पर फिर दस्तखत किये और संदूकची में बंद कर दिया। केक काटा गया… सबने काम्या को विश किया और अपनी तरफ से लाए उपहार उसे दिए। सोने से पहले, काम्या ने खिड़की खोली। चारों ने एक साथ बाहर झांका। ऊंचे पहाड़ों पर जलती रोशनियां, तारों की तरह दमक रही थीं। वादी में गहरा अंधेरा था… चांद चमक तो रहा था, पर उसकी रोशनी घाटियों की गहराई तक नहीं जा रही थी। काम्या ने एक नज़र चांद की तरफ डाली।
“गुड नाइट, दोस्त… अब तुम हमारे कमरे में भी आ सकते हो…” और वे चारों खिलखिला कर हंस पड़ीं। पता नहीं चांद ने सुना या नहीं, पर उनकी हंसी की गूंज ज़रूर घाटी में उतर गई थी।
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