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पुरी का जगन्नाथ मंदिर को हिन्दुओं के चार धाम में से एक गिना जाता है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का मंदिर है, जो भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को समर्पित है। यहां पर प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा अवसर पर 10 दिन तक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। जगन्नाथ रथ उत्सव आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया से आरंभ करके शुक्ल एकादशी तक मनाया जाता है। भगवान जगन्नाथ बहन सुभद्रा और भाई बलदाऊ के साथ रथ में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकले। धार्मिक मान्यता है कि भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा राधा और श्रीकृष्ण का युगल स्वरूप है। श्रीकृष्ण, भगवान जगन्नाथ के ही अंश स्वरूप हैं। इसलिए भगवान जगन्नाथ को ही पूर्ण ईश्वर माना गया है।
जगन्नाथ मंदिर का 4,00,000 वर्ग फुट में फैला है और चारदीवारी से घिरा है। कलिंग शैली के मंदिर स्थापत्यकला, और शिल्प के आश्चर्यजनक प्रयोग से परिपूर्ण, यह मंदिर, भारत के भव्य स्मारक स्थलों में से एक है। मुख्य मंदिर वक्र रेखीय आकार का है, जिसके शिखर पर भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र मंडित है। इसे नीलचक्र भी कहते हैं। यह अष्टधातु से निर्मित है और अति पावन और पवित्र माना जाता है। मंदिर के भीतर आंतरिक गर्भगृह में मुख्य देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं।
यह भाग इसे घेरे हुए अन्य भागों की अपेक्षा अधिक वर्चस्व वाला है। इससे लगे घेरदार मंदिर की पिरामिडाकार छत और लगे हुए मण्डप, अट्टालिका रूपी मुख्य मंदिर के निकट होते हुए ऊंचे होते गये हैं। यह एक पर्वत को घेरे हुए अन्य छोटे पहाडिय़ों, फिर छोटे टीलों के समूह रूपी बना है। मुख्य भवन एक 20 फुट ऊंची दीवार से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को घेरती है। एक भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थित है। इसका द्वार दो सिंहों द्वारा रक्षित हैं।
विश्व में बेहद लोकप्रिय शहर पुरी में 2019 की जगन्नाथ मंदिर रथ यात्रा शुरू हो गई है। यूं तो यह रथ यात्रा अपने आपमें बेहद ख़ास है लेकिन इस साल इस रथ यात्रा में बहुत कुछ ख़ास होने वाला है। क्योंकि इस साल भगवान जगन्नाथ मंदिर में रथ यात्रा के भगवान बदल दिए जाएंगे। पुरी के जगन्नाथ मंदिर की यह परंपरा है कि हर 14/15 सालों में भगवान की मूर्तियों को बदलकल नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। यह परंपरा सदियों से चलती आ रही है, एक तरफ जगन्नाथ मंदिर अपने आश्चर्यजनक कार्यों के कारण भक्तों के बीच श्रद्धा का अटूट रिश्ता कायम किये हुए है ऊपर से इसकी परम्पराएं इसे पूरे विश्व में लोकप्रिय बनाती हैं।
इस पर्व जगन्नाथ मंदिर से तीनों देवताओं के सजाये गये रथ खींचते हुए दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं और नवें दिन इन्हें वापस लाया जाता है। इस अवसर पर सुभद्रा, बलराम और भगवान श्री कृ्ष्ण का पूजन नौ दिनों तक किया जाता है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ का गुणगान किया जाता है। यहां नई मूर्तियां स्थापित करने वाली परंपरा की भी अपनी अलग विशेषताए हैं। यह मूर्तियां अलग अलग पेड़ की बनी हुई होती हैं। जिनको बनाने में पवित्रता का खासा ध्यान रखा जाता है। यह मूर्तियां जिन पेड़ों की बनी होती हैं वह कोई आम पेड़ नहीं होता। उन्हीं पेड़ों को इन मूर्तियों के लिए चयन किया जाता है जिसमे भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और सुदर्शन के चिन्ह बने होते हैं। साथ ही साथ जिस पेड़ का चयन किया जाता है वह पूरी तरह पवित्र हो, उसपर कभी कोई चढ़ा न हो, जीव-जंतु और कोई कीड़ा भी कभी उस पेड़ तक न पहुंचा हो और उन पेड़ के नीचे सर्प (सांप) निगरानी के लिए बैठा हो। इसके साथ ही जब साथ ही इस पेड़ के बारे में किसी को स्वप्न आता है कि किस जगह पर कितनी दूरी पर कौन सा पेड़ मूर्तियों के लिए पवित्र है तभी उस पेड़ का चयन किया जाता है, और इन पेड़ों की अच्छी तरह से तहकीकात करने के बाद तब ऐसे पेड़ को इन मूर्तियों के लिए चुना जाता है।
जगन्नाथ मंदिर अपने आश्चर्यों के लिए भी दुनिया भर में मशहूर है। ऐसे ही इस मंदिर का सबसे आकर्षक आश्चर्य है 56 भोग (पकवान)। जिसके बारे में कहा जाता है कि 56 अलग-अलग तरह के भोग एक दूसरे के ऊपर रखके, जहां देवी सुभद्रा निवास करती हैं, उस कमरे मे बंद कर दिया जाता है, तो खाना अपने आप पाक जाता है। इसमें सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि सबसे ऊपर का खाना सबसे पहले पकता है। कहा जाता है कि देवी सुभद्रा इसे पका देती हैं, जिसे प्रसाद के रूप में लोगों में बांटा जाता है।
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