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भगवान विष्णु ने जगत कल्याण के लिए दस अवतार लिए उनके दस अवतारों में भगवान नृसिंह का अलग ही महत्व है। अपनी छवि में क्रूर होते हुए भी भगवान नृसिंह मन से अत्यंत कोमल तथा दयालु हैं। भक्तों की पूजा उपासना से प्रसन्न होकर वे उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं। भगवान नृसिंह विष्णुजी के सबसे उग्र अवतार माने जाते हैं। उनकी पूजा-आराधना यश, सुख, समृद्धि, पराक्रम, कीर्ति, सफलता और निर्बाध उन्नति देती है।
नृसिंह मंत्र से तंत्र मंत्र बाधा, भूत पिशाच भय, अकाल मृत्यु, असाध्य रोग आदि से छुटकारा मिलता है तथा जीवन में शांति की प्राप्ति होती है पुराणों के संदर्भ के अनुसार प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे। जिनकी पत्नी थी दिति। उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हिरण्याक्ष तथा दूसरे का नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्याक्ष को भगवान विष्णु ने वाराह रूप धारण कर मारा। इससे क्रोधित हिरण्यकश्यप ने भार्इ की मृत्यु का बदला लेने के लिए अजेय होने का संकल्प करते हुए कर्इ वर्षों तक कठोर तपस्या की। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रहमाजी ने उसे अजेय होने का वरदान दिया। इसी दौरान हिरण्यकश्यप की पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया।
राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे दुर्गुण नहीं थे। वह विष्णु भगवान का भक्त था, जबकि हिरण्यकश्यप उसकी भक्ति के खिलाफ था।उसने अपने पुत्र को कर्इ बार रोका लेकिन प्रह्लाद निरंतर प्रभु की भक्ति करता रहा। इससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने की ठान ली। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद पर उसका हर वार खाली गया। एक दिन उसने प्रह्लाद से पूछा कि बता, तेरे भगवान कहां हैं ? इस पर प्रह्लाद ने कहा कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह विराजमान हैं। इस पर क्रोधित हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से पूछा कि क्या इस खंभे में भी भगवान हैं, इस पर प्रह्लाद ने हां में उत्तर दिया। यह सुनकर हिरण्यकश्यपु ने खंभे पर प्रहार किया तभी खंभे को चीरकर नृसिंह भगवान प्रकट हुए। उन्होंने हिरण्यकश्यप को पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ ड़ाला और उसका वध कर दिया।
नृसिंह जयंती के दिन सूर्योदय से पहले उठना चाहिए। नित्य कर्म करने के बाद पूजा प्रारंभ करें। मंत्रोच्चार के बीच नृसिंह भगवान को कुंकुंम, चंदन, केसर, नारियल, अक्षत, फल, पुष्प, प्रसाद अर्पण करें। पूजा के बाद नृसिंह गायत्री मंत्र का जाप करें। व्रत करने वाले श्रद्धालु को सामर्थ्य अनुसार तिल, स्वर्ण तथा वस्त्रादि का दान देना चाहिए। इस प्रकार सच्चे मन से नृसिंह जयंती का व्रत करने वाले व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
इसके लिए लाल रंग के आसन पर दक्षिणाभिमुख बैठकर रक्त चंदन या मूंगे की माला से नित्य एक हजार बार जप करने से लाभ मिलता है। भगवान नृसिंह का बीज मंत्र – ‘श्रौं’/ क्ष्रौं (नृसिंह बीज)। इस बीज में क्ष् = नृसिंह, र् = ब्रह्म, औ = दिव्यतेजस्वी, एवं बिंदु = दुखहरण है। इस बीज मंत्र का अर्थ है ‘दिव्यतेजस्वी ब्रह्मस्वरूप श्री नृसिंह मेरे दुख दूर करें’।
ध्याये न्नृसिंहं तरुणार्कनेत्रं सिताम्बुजातं ज्वलिताग्रिवक्त्रम्।
अनादिमध्यान्तमजं पुराणं परात्परेशं जगतां निधानम्।।
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