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हजारों साल तक की तपस्या के बराबर है षटतिला एकादशी का व्रत
Last Updated on January 18, 2020 by Deepak
षटतिला एकादशी का व्रत माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु को तिल और तिलों से बनी चीजें अर्पित करने का विधान है। इस दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को कन्यादान, स्वर्णदान और हजारों वर्ष की तपस्या का फल प्राप्त होता है। षटतिला एकादशी 20 जनवरी को है। पुराणों में षटतिला एकादशी का बहुत अधिक महत्व बताया गया है। जो व्यक्ति षटतिला एकादशी का व्रत करता है। उसे कन्यादान और स्वर्णदान का फल प्राप्त होता है। इतना इस मात्र एक व्रत का फल हजारों साल तक की तपस्या के बराबर बताया गया है। यह व्रत मनुष्य को न केवल जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति कराता है। बल्कि इस व्रत के करने से मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम में स्थान भी प्राप्त होता है। षटतिला एकादशी में छह प्रकार के तिलों के प्रयोग के बारे में बताया गया है।
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पहला तिल मिलाकर जल से स्नान करना, दूसरा तिल के तेल से मालिश करना, तीसरा तिल के तेल से हवन करना, चौथा तिल के पानी को ग्रहण करना, पांचवा तिल का दान करना और छठा तिल से बनी चीजों का सेवन करना।
षटतिला एकादशी तिथि 20 जनवरी सोमवार से शुरू होगी और 21 जनवरी तड़के दो बजे समाप्त होगी। व्रत का कारण मंगलवार सुबह 8 बजे से 9.21 तक किया जा सकता है।
षटतिला एकादशी की पूजा विधिः षटतिला एकादशी दशमी तिथि से ही शुरु हो जाता है। इसलिए एकादशी के नियमों का पालन दशमी तिथि से ही करें। इस दिन सूर्योदय से पहले उठें। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करें। लेकिन काले और नीले रंग के वस्त्र बिल्कुल भी धारण न करें। इसके बाद एक साफ चौकी पर गंगाजल के छिंटे मारकर उस पर पीला कपड़ा बिछाएं और भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद उस प्रतिमा या तस्वीर को पंचामृत से स्नान कराएं जिसमें तुलसी दल अवश्य हो। इसके बाद दोबारा भगवान विष्णु को गंगाजल से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के फूलों की माला पहनाएं और उन्हें पीले वस्त्र, पीले रंग के फूल, पीले रंग के फल , काले और सफेद तिल, नैवेद्य आदि अर्पित करें। इसके बाद भगवान विष्णु के मंत्र ऊं नमों भगवते वासुदेवाय नम: या ऊं नमों नारायणाय मंत्र का जाप करें और विष्णु सहस्त्रनाम का भी पाठ करें। मंत्र जाप करने के बाद तिलों से हवन अवश्य करें। इसके बाद भगवान विष्णु को तिलों से बनी चीजों का भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद भगवान विष्णु की धूप व दीप से आरती उतारें। आरती उतारने के बाद भगवान के बाद किसी ब्राह्मण या निर्धन व्यक्ति को भोजन अवश्य कराएं। भोजन कराने के बाद उस ब्राह्मण या निर्धन व्यक्ति को तिलों का दान दक्षिणा सहित अवश्य करें।क्योंकि इस दिन तिलों के दान को अधिक महत्व दिया जाता है।
षटतिला एकादशी की कथाः पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक महिला रहती थी वह भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्त थी। वह भगवान विष्णु की बहुत अधिक पूजा पाठ किया करती थी। एक दिन भगवान विष्णु उस महिला से प्रसन्न हो गए और एक भिखारी का वेश बनाकर उस महिला के घर पर दान मांगने के लिए आ गए। उस महिला ने क्रोध में आकर भगवान के पात्र में एक पत्थर डाल दिया। उस महिला को ऐसा करने से जीवन के सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति तो हो गई। लेकिन उसे खाने के लिए कुछ भी न मिला। वह सोचने लगी की ऐसी सुख सुविधा का क्या लाभ जिससे वह खाने की कोई वस्तु तक नहीं खरीद सकती। इसके बाद उसने फिर भगवान से प्रार्थना की और अपनी गलती का कारण पूछा। तब भगवान ने उसे दर्शन देकर बताया कि जब तक कठोर तप के बाद कुछ दान किया जाता। तब तक तप का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। विशेषकर षटतिला एकादशी के दिन तो दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन तिल और तिल से बनी वस्तुओं का दान करना सबसे ज्यादा शुभ होता है। भगवान की बात सुनकर उस महिला षटतिला एकादशी के दिन तिल से बनी मिठाई का दान किया। इसके बाद भगवान विष्णु की कृपा से उस महिला के पास न केवल ऐशों आराम की सभी वस्तुएं थी। बल्कि उसके अन्न के भंडार में भी कोई कमीं नही थी।