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साधक के रोग, शोक, संताप व भय दूर करती है मां कात्यायनी
Last Updated on April 14, 2024 by saroj patrwal
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा का विधान है। कहते हैं माता अपने भक्तों के लिए उदार भाव रखती हैं और उनकी हर मनोकामनाएं पूरी करती हैं। मां कात्यायनी की कृपा से भक्तों के सभी मंगल कार्य पूरे होते हैं। देवी के इस स्वरूप की पूजा से कन्याओं को योग्य जीवनसाथी की प्राप्ति होती है और विवाह में आने वाली बाधाएं भी दूर होती हैं। माता कात्यायनी की उपासना से साधक के रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। कहा जाता है कि देवी ने ही असुरों से देवताओं की रक्षा की थी। मां ने महिषासुर का वध किया था और उसके बाद शुम्भ और निशुम्भ का भी वध किया था। सिर्फ यही नहीं, सभी नौ ग्रहों को उनकी कैद से भी छुड़वाया था।
पूजा- विधिः सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नानादि कर सभी नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं। देवी कात्यायनी की पूजा करते समय मंत्र ‘कंचनाभा वराभयं पद्मधरां मुकटोज्जवलां. स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनी नमोस्तुते.’ का जप करें। इसके बाद पूजा में गंगाजल, कलावा, नारियल, कलश, चावल, रोली, चुन्नी, अगरबत्ती, शहद, धूप, दीप और घी का प्रयोग करना चाहिए। मां कात्यायनी को शहद का भोग लगाएं। इससे मां प्रसन्न हो जाती हैं। इस दिन मां को लाल रंग के फूल चढ़ाएं। माता की पूजा करने के बाद ध्यान पूर्वक पद्मासन में बैठकर देवी के इस मंत्र का मनोयोग से यथा संभव जप करना चाहिए। इस तरह माता की पूजा करना बड़ा ही फलदायी माना गया है।
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मां कात्यायनी का ध्यान मंत्र
वन्दे वाञ्छित मनोरथार्थ चन्द्रार्धकृतशेखराम्।सिंहारूढा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्विनीम्॥
स्वर्णवर्णा आज्ञाचक्र स्थिताम् षष्ठम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालङ्कार भूषिताम्।
मञ्जीर, हार, केयूर, किङ्किणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पल्लवाधरां कान्त कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम्॥
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