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Himachal के इस जिला में पैदा होने वाली मक्की को मिलेगा जीआई टैग, देश दुनिया में मिलेगी पहचान
Last Updated on March 23, 2021 by Sintu Kumar
चंबा। भौगोलिक संपदा और नैसर्गिक सुंदरता से भरपूर स्यूल नदी के दोनों किनारों पर फैली सलूणी घाटी (Saluni Valley) को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जल्द एक नई पहचान मिलने वाली है। सलूणी घाटी में किसानों द्वारा पीढ़ियों से उगाई जा रही मक्की की पारंपरिक किस्मों (Traditional varieties of maize) को जीआई टैग मिलेगा। मक्की की पारंपरिक किस्मों की खेती के जरिए आज के इस दौर में भी उनका संरक्षण करने वाले किसानों के संघ “सलूणी सफेद मक्का संगठन” की सोच और प्रयासों के साथ जिला प्रशासन के सहयोग से अब स्वाद और गुणवत्ता से भरपूर मक्की की पारंपरिक किस्मों को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग (Geographical Indication Tag) यानी भौगोलिक सूचक पंजीकरण मिलने की उम्मीद पूरी होने वाली है।
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डीसी चंबा डीसी राणा बताते हैं कि सलूणी सफेद मक्का संगठन से मक्की की इन पारंपरिक किस्मों की ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्ताव मिला था। प्रस्ताव को सभी अध्ययनों और तथ्यों के साथ हिमाचल प्रदेश राज्य विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद के पेटेंट इनफॉरमेशन सेंटर को प्रेषित किया था। खुशी का विषय है कि इस मामले को अब ज्योग्राफिकल इंडिकेशन पंजीकरण के लिए चेन्नई स्थित रजिस्ट्रार के कार्यालय (Chennai Registrar office) को भेज दिया गया है। पूरी उम्मीद है कि आने वाले कुछ ही समय में सलूणी घाटी में किसानों द्वारा पीढ़ियों से उगाई जा रही मक्की की पारंपरिक किस्मों को जीआई टैग मिलेगा। इनमें हच्छी कुकड़ी (सफेद मक्की), रत्ती और चिटकु मक्की शामिल है। जमाने से ये किसान फसल दर फसल बीजों को सहेज कर अगली बुआई के लिए संरक्षित रखते आ रहे हैं। भौगोलिक सूचक पंजीकरण प्राप्त होने से मक्की की इन किस्मों को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक विशेष पहचान मिलने वाली है।
चंबा रुमाल सहित इन उत्पादों को मिला है अब तक जीआई टैग
बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुछ उत्पादों को पहले ही जीआई टैग मिल चुका है जिनमें चंबा रुमाल भी शामिल है। कुल्लू शॉल, कांगड़ा चाय, किन्नौरी शॉल, कांगड़ा पेंटिंग, चूली तेल और काला जीरा भी भौगोलिक सूचक पंजीकरण प्राप्त उत्पाद हैं। सलूणी क्षेत्र की जिन पंचायतों में मक्की की इन पारंपरिक किस्मों को उगाया जा रहा है, उनमें भांदल, सनूंह, किहार, डांड, पिछला डियूर, कंधवारा, भड़ेला, खड़जौता, हिमगिरी, पंजेई, किलोड़ और सूरी पंचायतें शामिल हैं। चंबा (Chamba) जिला की सीमांत भांदल पंचायत भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय के पौधा किस्म और कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण द्वारा 10 लाख की राशि का पादप जीनोम संरक्षक सामुदायिक पुरस्कार प्राप्त कर चुकी है। इससे पूर्व भारत सरकार द्वारा पौधा किस्म रजिस्ट्री के तहत इन्हें रजिस्ट्रीकरण प्रमाण पत्र दिया गया था।
12 पंचायतों में होती है मक्की की इन किस्मों बिजाई
मक्की की इन किस्मों को 12 पंचायतों के 158 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बोया जाता है। विशेष तौर से सफेद मक्की प्रोटीन से भरपूर मानी जाती है। इस किस्म में क्रूड फाइबर नामक तत्व भी पाया जाता है जो पाचन तंत्र के लिए तो मुफीद है ही इसके अलावा डायबिटीज को भी नियंत्रित करने में सहायक है। अध्ययन के मुताबिक मक्की हृदय स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर रहती है। इसमें विटामिन और एंटीऑक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा होती है। नेत्र स्वास्थ्य में भी इसका लाभ रहता है। सफेद मक्की का आटा ग्लूटन फ्री होता है। अपने शरीर के प्रति सजग रहने वाले जागरुक और सेलेब्रिटी भी अक्सर ग्लूटन फ्री अनाज को तरजीह देते हैं। कृषि विभाग के अधिकारी राजेंद्र ठाकुर बताते हैं कि भांदल पंचायत के प्रयुंगल गांव को सरकार की बीज संरक्षण योजना के तहत भी लाया जाएगा ताकि किसान इन पारंपरिक बीजों का वैज्ञानिक तरीके से रखरखाव और उत्पादन सुनिश्चित कर सकें।