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मजदूरी करती थी मां-बेटी, नई तरह की खेती अपनाकर बन गईं लखपति
मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा और सच्ची लगन हो तो इंसान क्या नहीं कर सकता। झारखंड (Jharkhand) की एक मां-बेटी ने इस बात को सिद्ध किया है। बुरी स्थितियों में भी हार ना मानने का जज्बा रखने वाली बीलो देवी आज अपने इलाके में एक सफल किसान के रूप में जानी जाती हैं। राजधानी रांची से करीब 30 किमी दूर ओरमांझी प्रखंड के उकरीद गांव की रहने वाली बीलो आज खेती से लाखों रुपए कमाती हैं। पति की असामयिक मौत और परिवार चलाने की चुनौती को देखते हुए बीलो देवी ने अपनी बेटी सुनीता के साथ मजदूरी शुरू की थी, जिससे किसी तरह घर का खर्च चल पाता था। आर्थिक हालात लगातार बिगड़ रहे थे तो बीलो के साथ बड़ी बेटी सुनीता भी सखी मंडल (स्वयं सहायता समूह) में जुड़ी और अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए सखी मंडल से कर्ज लेकर काम पूरा करती थी।
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सखी मंडल में ही सुनीता को एक दिन टपक सिंचाई से उन्नत खेती के बारे में बताया गया। सुनीता ने अपनी मां के साथ चर्चा कर मजदूरी का काम छोड़ने का निर्णय लिया और मिलकर अपने खेत में टपक सिंचाई से खेती में मेहनत करने की ठानी। फिर क्या था सुनीता अपनी मां बीलो देवी के साथ समूह से कर्ज लेकर झारखंड हॉर्टिकल्चर माइक्रो ड्रिप इरीगेशन प्रोजेक्ट (Horticulture Micro Drip Irrigation Project) के तहत 0.25 एकड़ जमीन पर ड्रिप लगाने का काम शुरू किया। इस परियोजना के तहत सुनीता ने लाभ लेकर (ड्रिप इरिगेशन) टपक सिंचाई से जब खेती शुरू की तो काफी फायदा होने लगा। सुनीता ने बताया कि टपक सिंचाई से पहली बार फूलगोभी की खेती की और करीब 1 लाख की बिक्री हुई जिसमें करीब 75 हजार शुद्ध मुनाफा हुआ।
कुछ ही महीनों में इतनी कमाई देखकर मेरी मां बीलो ने भी माइक्रो ड्रिप इरिगेशन परियोजना से जुड़कर और 0.25 एकड़ में टपक सिंचाई से खेती करवानी शुरू की। आज हम सालाना 4 से 5 लाख रुपये कमा लेते हैं।” बीलो बताती हैं, “टपक सिंचाई से खेती के जरिए लगातार होने वाले फायदे को देखकर हमलोग 1.5 एकड़ जमीन लीज पर लेकर सब्जी की खेती कर रहे हैं। हमारा मुनाफा बढ़ा है, खेती से होने वाले लाभ को अब हमलोग समझ पा रहे हैं। पुराने दिनों को याद करते हुए बीलो बताती हैं कि जीवन अब बदल गया है। छोटी बेटी मीना ने ग्रैजुएशन तक की पढ़ाई पूरी कर ली है। आज मीना हमारे सारे काम का हिसाब रखती है। हम लोग अपनी उपज को थोक में व्यापारी को बेचते हैं। मुख्य रुप से हम गोभी, मटर और तरबूज की खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं।
मां-बेटी का दो एकड़ में फैला खेती का फार्म
सुनीता ने बताया कि मुझे सखी मंडल से अच्छी मदद मिली। मैंने पहले 60 हजार रुपये ऋण (Loan) लिया था, जिसे चुकता कर दिया है। इसके बाद खेती के लिए करीब सवा लाख का लोन लिया था जो धीरे-धीरे चुका रही हूं। सखी मंडल से ही टपक सिंचाई का ज्ञान मिला और हम मजदूरी से किसानी में आ गए। झारखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत इन महिला किसानों को जीवामृत, नीमास्त्र जैसे घर में गोबर, गौमूत्र एवं नीम के पत्ते से बनाए गए खाद एवं छिड़काव द्रव्य की जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया गया। बीलो देवी बताती हैं कि उन्होंने तय किया है कि 5 एकड़ जमीन लीज पर लेकर अपनी खेती को आगे बढ़ाएंगी।