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हर साल बालिका दिवस 24 जनवरी को मनाया जाता है। यह दिवस यह देखते हुए मनाया जाता है कि आज के दौर में लड़कियां हर क्षेत्र में आगे जा रही हैं। यही वह दिन है, जिस दिन इंदिरा गांधी पहली बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठी थीं। पर सब कुछ एक दिखावे जैसा तब लगने लगता है जब हम देखते हैं कि एक तरफ तो बालिकाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं और दूसरी तरफ वे भेदभाव की शिकार हैं। पढ़ा-लिखा और जागरूक समाज भी इससे अछूता नहीं है। भ्रूण हत्या इतनी रोकथाम के बाद भी नहीं रुक सकी है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार देते हैं या जन्म के बाद उन्हें लावारिस छोड़ दिया जाता है।
लिंग अनुपात में लगातार गिरावट आ रही है और यही नहीं बेटियों के स्वास्थ्य और उनके जीवनस्तर में भी गिरावट आई है। पूरे एशिया महाद्वीप में भारत की महिला साक्षरता दर सबसे कम है। शहरों की बात छोड़ दें तो भारत में 6 से 14 साल की लड़कियों को अब भी स्कूल छोड़ना पड़ता है क्योंकि उन्हें घर संभालने के साथ-साथ छोटे भाई-बहनों की देखभाल करनी होती है। इसी तरह की जानें कितनी वजहें उनके सुधार की राह में बाधा बन जाती हैं। गौरतलब है कि इन्हीं स्थितियों और भेदभावों को मिटाने के लिए बालिका दिवस पर जोर दिया जाता है। बालिकाओं की अपनी पहचान इन्हीं दबावों के कारण नहीं उभर पाती। भेदभाव शिक्षित और आधुनिक कहे जाने वाले परिवारों में भी है। जरूरी है कि उन्हें मात्र मां, बेटी या बहन के दायरों से बाहर लाया जाए।
बालिका दिवस इंदिरा गांधी के संदर्भ में नारी शक्ति के रूप में आयोजित होता है… तो वह नारी शक्ति कहां है। आखिर वे हर क्षेत्र में प्रगति कर रही हैं फिर भी उनसे जीने का अधिकार छीन लिया जाता है। शिक्षित मां-बाप भी उनकी हत्या करने से नहीं चूकते। बालिका के जन्म से ही उसके जीवन की जंग शुरू हो जाती है। उसे याद दिलाया जाता है कि उसे सपने देखने का कोई अधिकार नहीं। उनका कोई घर नहीं क्योंकि घर कोई भी हो चाहे मायके या ससुराल का, उन्हें उसके स्वामित्व का अधिकार नहीं मिलता। बिना सोचे-विचारे कन्या भ्रूण हत्या के दुष्परिणाम अब सामने आने लगे हैं। कई जातियों में लड़कियां न मिलने से परिवारों को अंतरजातीय विवाह करने पड़ रहे हैं। सवाल यह है कि क्या प्रकृति के किसी सुंदर विलुप्त प्राणी की तरह बेटियों की प्रजाति भी लुप्त हो जाएगी…? होश में आइए अभी भी वक्त है। बेटियां हमारे घर का चिराग हैं उनकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। जरूरी है कि वे सशक्त, सुरक्षित और बेहतर माहौल प्राप्त करें।
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