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हिमाचल में बन रहा सीमेंट ‘घर’ में मंहगा, बाहर सस्ता
हिमाचल प्रदेश। सीमेंट और बिलजी दो ऐसी मूलभूत चीजें, जिनके उत्पादन में हिमाचल ने अपना एक विशेष स्थान बनाया है। हिमाचल प्रदेश से कई राज्यों को बिजली और सीमेंट सस्ते दामों में बेचा जाता है और इसमें सरकारी राजस्व को बेहिसाब मुनाफा भी होता है। मगर इन दोनों ही चीजों का हिमाचल में ही महंगा होना दुर्भाग्यपूर्ण है और देवभूमि के लोगों के साथ ये सरासर नाइंसाफी है।
जयराम सरकार हिमाचल की आम जनता के सरोकार की बातें करती आई है। मगर पहले बिजली के दाम, फिर बस किराया बढ़ाना और साल में तीन बार सीमेंट के दाम बढ़ाना आखिर कैसे जनता के हित में है। सीमेंट की कीमतों का सबसे ज्यादा असर आम आदमी पर ही पड़ता है। हिमाचल में के तीन प्लांट हैं। हिमाचल में सुविधाएं लेकर ये कंपनियां हिमाचल में ही महंगा सीमेंट बेच रही हैं, जबकि देश के अन्य राज्यों में यही कंपनियां कम दाम पर सीमेंट बेचती हैं। सीमेंट कंपनियों का नियंत्रण सरकार के ऊपर होता है, जबकि हमारी सरकार का इन कंपनियों के ऊपर कोई नियंत्रण नहीं है।
प्रदेश में इस साल तीन बार सीमेंट के दाम बढ़ाए गए। पिछले साल जहां सीमेंट के बैग की कीमत 350 के करीब बैठती थी, वहीं अब ये बैग 400 रुपये से भी ज्यादा का प्रदेशवासियों को मिल रहा है। इस साल पहली बार जनवरी महीने में दो बार पांच-पांच रुपये दाम बढ़ाए गए। यानी प्रति बैग 10 रुपये बढ़ाए गए। इसके बाद अप्रैल में सीमेंट के दाम प्रति बैग दस रुपये बढ़ाए गए, जो अक्टूबर आते-आते दस रुपये और बढ़ा दिये गए। लगातार सीमेंट के दाम में बढ़ोतरी के चलते अब अंबुजा सीमेंट का एक बैग 407 रुपये का मिल रहा है तो एसीसी सीमेंट 410 रुपये प्रति बैग पहुंच चुका है।
जयराम मंत्रिमंडल का हर मंत्री आम जनता के हितकारी फैसलों के दावे करता है। सरकार दाम बढ़ने की वजह माल ढुलाई बताती है। सरकार यह भी तर्क देती है कि सीमेंट के दामों को राज्य सरकार तय नहीं करती। मगर इस कोरोना काल में जनता पर मंहगाई और बेरोजगारी की मार के लिए अगर सवाल सरकार से नहीं, फिर तो किससे किये जाएं। आखिर कौन इसकी जवाबदेही तय करेगा।