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हाईकोर्ट ने पीएचसी व सीएचसी में स्टाफ की कमी को लेकर सरकार से मांगी ताज़ा स्टेटस रिपोर्ट
शिमला। हाईकोर्ट (High Court) ने राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (पीएचसी) एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों ( सीएचसी) में डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ की कमी के मुद्दे को लेकर दायर याचिका में प्रदेश सरकार को ताज़ा स्टेटस रिपोर्ट(latest status report) दायर करने के आदेश दिये। कोर्ट ने सरकार को आदेश दिए कि मामले पर पिछली सुनवाई के बाद यदि डॉक्टरों और अन्य पैरा मेडिकल स्टाफ( Doctors and other Para Medical staff) के कोई रिक्त पद भरे गए हैं तो उनकी विस्तृत जानकारी कोर्ट के समक्ष रखे। मुख्य न्यायाधीश एम एस रामचंद्र राव और न्यायाधीश ज्योत्सना रिवाल दुआ की खंडपीठ ने नियुक्त किए गए डॉक्टर और अन्य कर्मियों के नाम सहित उनकी जानकारी देने के आदेश दिए। कोर्ट ने उपरोक्त रिक्त पदों के खिलाफ भर्ती किए कर्मियों की नियुक्ति की तारीख का ब्योरा भी मांगा है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं
जनहित में दायर किये गये मामले में प्रदेश के अस्पतालों और अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में मेडिकल स्टाफ की कमी (shortage of medical staff)के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया है। प्रार्थी की ओर से कहा गया कि स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मचारियों की भारी कमी है। राज्य सरकार द्वारा उठाए गए कदम पर्याप्त नहीं हैं। भारतीय सार्वजनिक स्वास्थ्य मानकों के दिशानिर्देशों के अनुसार भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कर्मचारियों की कमी है। जनहित में दायर याचिका को विस्तार देते हुए कोर्ट ने राज्य के सीएचसी व पीएचसी में डॉक्टरों और अन्य कर्मचारियों की उपलब्धता के बारे में जानकारी मांगी थी।
कोर्ट ने पुलिस कर्मी को डिमोट किए जाने के निर्णय को खारिज किया
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग (Police Department) द्वारा अपने कर्मी को डिमोट किए जाने के निर्णय को खारिज कर दिया। न्यायाधीश सत्येन वैद्य ने याचिकाकर्ता लजेंद्र सिंह पठानिया की याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया। मामले के अनुसार याचिकाकर्ता सहित विभाग में कार्यरत एक अन्य लिपिक को 24 अगस्त 2006 को पदोन्नत किया गया था। सामान्य वर्ग के लिए पद आरक्षित न होने के कारण याचिकाकर्ता को पदोन्नत नहीं किया गया। उस समय विभाग में पांच वरिष्ठ सहायक के पदों को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रखा गया था। लेकिन योग्य लिपिक न होने के कारण ये पद खाली रह गए। याचिकाकर्ता ने खाली पदों को भरने के लिए विभाग के पास प्रतिवेदन किया। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने तात्कालिक प्रशासनिक ट्रिब्यूनल में आवेदन दायर किया।
डिमोशन के खिलाफ प्रार्थी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी
ट्रिब्यूनल ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के तहत विभाग को आदेश दिए कि उसे पदोन्नति का लाभ दिया जाए। विभाग ने याचिकाकर्ता को 24 अगस्त 2006 से वरिष्ठ सहायक के पद पर पदोन्नति दे दी। इस पदोन्नति को याचिकाकर्ता के सहकर्मियों ने विभाग के समक्ष चुनौती दी। दलील दी गई कि वे लिपिक वर्ग में याचिकाकर्ता से वरिष्ठ हैं। यदि याचिकाकर्ता को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित पद पर पदोन्नति दी जाती है, तो उस स्थिति में पहले उन्हें पदोन्नति का लाभ दिया जाना चाहिए। विभाग ने याचिकाकर्ता की पदोन्नति को वापस लिया और उसे पदोन्नति का लाभ वर्ष 2010 से दिया गया। अपनी डिमोशन के खिलाफ प्रार्थी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि सार्वजनिक पदों पर रिक्ति आधारित आरक्षण दिया जाना चाहिए।