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कलाई पर मौली बांधने का यह है धार्मिक महत्व, पढ़ें पूरी खबर
हिंदू धर्म में पाठ-पूजा का विशेष महत्व है। देवी-देवताओं को खुश करने के लिए उनकी पूजा की जाती है। हिदू धर्म में पूजा के दौरान साधकों की कलाई पर कलावा (kalawa) या मौली को बांधना और माथे पर तिलक लगाना बहुत शुभ माना जाता है। हाथ में कलावा यानि मौली को बांधने का अर्थ है रक्षा सूत्र बांधना।
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कहा जाता है कि हाथ में कलावा बांधने की शुरुआत दैविक काल से हुई। कालांतर से ही रक्षा सूत्र बांधने की प्रथा है। कालांतर में असुर-वृत्रासुर के आतंक से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। जिसके बाद उस समय सभी ऋषि-मुनियों और स्वर्ग के देवताओं ने स्वर्ग सम्राट इंद्र देव से प्रार्थना की और राजा इंद्र असुर-वृत्रासुर से युद्ध करने की तैयारी करने लगे। कहा जाता है ति जब राजा इंद्र युद्ध पर जा रहे थे, तब इंद्र देवता की अर्धांगिनी शची ने राजा इंद्र की दाहिनी बाजू पर कलावा बांध त्रिदेव और आदिशक्ति से रक्षा की कामना की थी। इसके बाद इंद्र देव युद्ध करने गए थे और युद्ध में हासिल कर वापस लौटे थे। कुछ कथाओं का यह भी कहना है कि कलाई पर कलावा इसलिए भी बांधा जाता है क्योंकि श्रीहरि भगवान ने अमरता का वरदान देने के लिए राजा बलि की कलाई पर कलावा बांधा था। मान्यता है कि रक्षा सूत्र बांधने से त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश समेत तीनों देवियों की खुश होती हैं और मनुष्य पर अपनी कृपा बरसती है। भगवान ब्रह्मा की कृपा से कीर्ति, भगवान विष्णु की कृपा से रक्षा बल, भगवान शिव की कृपा से सभी संकटों से निजात, माता लक्ष्मी की कृपा से धन, माता दुर्गा की कृपा से शक्ति
और माता सरस्वती की कृपा से बुद्धि मिलती है। आमतौर में मौली में तीन रंग के धागे होते हैं, लाल, पीला और हरा। जबकि कुछ मौली पांच रंग की भी होती हैं, जिनमें लाल, नीला, सफेद, पीला और हरा रंग होता है। जिसके चलते मौली को कभी त्रिदेव व पंचदेव कहा जाता है।
शास्त्रों के अनुसार पुरूषों और अविवाहित कन्याओं के दाएं हाथ में मौली बांधनी चाहिए। जबकि विवाहित स्त्रियों के लिए बाएं हाथ में मौली बांधनी चाहिए। वहीं, कलावा बांधते समय एक हाथ की मुट्ठी बंधी होनी चाहिए जबकि दूसरा हाथ सिर पर होना चाहिए। मौली के सूत्र को तीन बार ही हाथ में लपेटना चाहिए। मौली बांधने का शुभ दिन मंगलवार और शनिवार माना जाता है। हर मंगलवार और शनिवार को पुरानी मौली उतारकर नई मौली बांधना शुभ माना जाता है। कहा जाता है कि हाथ से उतारी हुई पुरानी मौली को पीपल के पेड़ के पास रख देना चाहिए या फिर कहीं बहते हुए पानी में बहा देना चाहिए।