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एक विवादास्पद विधा है जो वैज्ञानिक विधि का उपयोग करते हुए इस बात की जांच-परख करने का प्रयत्न करती है कि मृत्यु के बाद भी मनोवैज्ञानिक क्षमताओं का अस्तित्व रहता है या नहीं। परामनोविज्ञान का संबंध मनुष्य की उन अधिसामान्य शक्तियों से है, जिनकी व्याख्या अब तक के प्रचलित सामान्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से नहीं हो पाती। ये कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं जो एक भिन्न कोटि की मानवीय शक्ति तथा अनुभूति की ओर संकेत करती हैं। इन घटनाओं की वैज्ञानिक स्तर पर घोर उपेक्षा की गई है। वैज्ञानिक उनकी उपेक्षा कर सकते हैं, पर घटनाओं को घटित होने से नहीं रोक सकते। घटनाएं वैज्ञानिक ढांचे में बैठती नहीं दिखतीं। वे आधुनिक विज्ञान की धारणा को भंग करने की चुनौती देती प्रतीत होती हैं इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आज भी परामनोविज्ञान को वैज्ञानिक संदेह तथा उपेक्षा की दृष्टि से देखता है। किंतु वास्तव में परामनोविज्ञान न जादू टोना है, न वह गुह्यविद्या, प्रेतविद्या या तंत्रमंत्र जैसा कोई विषय।
इन विलक्षण प्रतीत होने वाली अधिसामान्य घटनाओं या प्रक्रियाओं का विधिवत तथा क्रमबद्ध अध्ययन ही परामनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य है। इसी के साथ परामानसिकीय घटनाएं और भी विलक्षण प्रतीत होती हैं तथा वैज्ञानिक धरातल से अधिक दूर हैं – उदाहरणार्थ प्रेतात्माओं, या मृतात्माओं से संपर्क, स्वचालित लेखन या भाषण आदि। मानव का अदृश्य जगत से संपर्क में विश्वास बहुत पुराना है।परामनोविद्या का इतिहास भी उतना ही पुराना है विशेष रूप से भारत में। किंतु वैज्ञानिक स्तर पर इन तथाकथित पराभौतिक विलक्षण घटनाओं का अध्ययन उन्नीसवीं शताब्दी की देन है। इससे पूर्व इन तथाकथित रहस्यमय क्रिया व्यापारों को समझने की दिशा में कोई संगठित वैज्ञानिक प्रयत्न नहीं हुआ।
पूर्वाभास :
भविष्य का पूर्वाभास या किसी के मन की बातें पढ़ लेना – इन सब ऋद्धियों-सिद्धियों का भंडार अचेतन मन की किन्हीं परतों में सुरक्षित है।परामनोवैज्ञानिकों का मंतव्य है कि वह प्रशिक्षित व्यक्तियों में इन शक्तियों से संपन्न छठी इंद्रिय का समुचित विकास कर सकते हैं।
पराशक्ति ऋद्धियों- सिद्धियों के अतिरिक्त मस्तिष्क में असंख्य प्रतिभाएं भी सुरक्षित हैं।अब यह मान्यता जोर पकड़ती जा रही है कि इस चेतन तत्व के हम जीवनभर में एक बहुत ही छोटे से अंश
का ही उपयोग कर पाते हैं।यदि विभिन्न प्रतिभाओं को जाग्रत किया जा सके तो हम समृद्धिशाली प्रतिभाओं के स्वामी हो सकते हैं।
भारतीय आध्यात्म में ऋद्धि- सिद्धियों को जागृत करने की प्रणाली योग एवं समाधि है। समाधि में सम्मोहन की तरह ही, चेतन अवस्था तो लुप्त हो जाती है और साधक अपनी धारणानुसार अचेतन लोक में ही विचरता है और धीरे-धीरे अचेतन की परतों से ही विभिन्न शक्तियां खींच लेता है। यह दीर्घकालीन और समय साध्य प्रणाली है। यदि परामनोवैज्ञानिकों के प्रयोगों से कोई नई प्रणाली सर्वसुलभ हो गई तो एक दिन सर्वसाधारण व्यक्ति के लिए उन पराशक्तियों को प्राप्त करना संभव हो जाएगा, जो अभी तक सिद्ध योगियों की ही संपत्ति मानी जाती हैं।
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