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कुल्लू।किसान अपनी फसलों की गुणवत्ता व उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिए खाद का इस्तेमाल करते हैं। हिमाचल में एक ऐसा भी गांव है जहां रासायनिक खाद को खेत में डालना तो दूर उसे गांव में लाने पर भी प्रतिबंध है। ग्रामीणों का मानना है कि अगर उसे गांव में लाया गया तो उनका आराध्य देव नाराज हो जाएंगे और उन्हें देवता के प्रकोप का सामना करना होगा। वहीं यहां देव नियम और प्राचीन परंपरा अनुसार गोबर के सिवाय रासायनिक खादों पर पाबंदी है।
जिला के विश्व प्राचीनतम गांव मलाणा में सदियों से खेत-खलिहानों में रासायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया जाता है। देव नियम भंग करने पर देवता रूठ जाते हैं और अनहोनी होने की आशंका रहती है।यहां के लोग खाद को अपने हाथों से स्पर्श तक नहीं करते हैं। मलाणा गांव के लोग देव आदेशों का प्रमुखता से पालन करते हैं। इसी के चलते लोगों ने देव स्थल के समीप खेत-खलिहानों में रासायनिक खाद न डालने की कसम खाई है। हालांकि घाटी के कई स्थानों पर भी इस देव नियम का पालन किया जाता है लेकिन मलाणा गांव में अलग तरीके से देव परंपरा का निर्वहन किया जाता है। देवलुओं की मानें तो खाद में हड्डियों और अन्य अपशिष्ट पदार्थों का प्रयोग होता है। इससे देव धरा अपवित्र हो जाती है।
मलाणा के ग्रामीणों का कहना है कि मलाणा में रासायनिक खादों और दवाइयों का प्रयोग नहीं किया जाता है। उन्होंने कहा कि उन्हें पुराने देव रीति-रिवाज का निर्वहन करना पड़ता है। अगर वे खाद का प्रयोग करेंगे तो उनकी धरती अपवित्र हो जाएगी और खेतों में कोई भी फसल नहीं होगी। उन्होंने कहा कि अभी तक किसी ने खाद का प्रयोग नहीं किया है। उनके मुताबिक अगर आधुनिकता का दौर देखकर खाद का प्रयोग किया तो देवता रूठ जाते हैं।
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