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हिमाचल में ब्रज की होली को सहेजे हुए कुल्लू का वैरागी समुदाय
Last Updated on March 6, 2020 by
कुल्लू। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में वैरागी समुदाय के लोग विशेष होली मनाते हैं उनकी यह होली ब्रज (Braj) में मनाई जाने वाली होली की तर्ज पर होती है। ब्रज की भाषा में होली के गीत वृंदावन के बाद कुल्लू घाटी में ही गूंजते हैं। परंपरागत गीतों को गाते हुए यह समुदाय चालीस दिन तक इस होली उत्सव को मनाता है। साढ़े तीन सौ साल से कुल्लू में मनाई जाने वाली यह अनोखी होली बसंत पंचमी से शुरू होती है। उसी दिन से इस समुदाय के लोग एक-दूसरे के घरों व मंदिरों में जाकर होली मनाते हुए गुलाल उड़ाते हैं और होली के गीत गाते हैं।
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वैरागी समुदाय (Vairagi community) के लोग रघुनाथ को हर दिन गुलाल लगाते हैं। इस समुदाय द्वारा मनाई जाने वाली इस होली का संबंध नग्गर के झीड़ी और राधा कृष्ण मंदिर नग्गर ठावा से भी है। बताया जाता है कि इस समुदाय के गुरु पेयहारी बाबा रहते थे और उन्हीं की याद में समुदाय के लोग टोली बनाकर नग्गर के ठावा और झीडी में जाकर भी होली के गीत गाते हैं। ये लोग हर साल उनके तपोस्थली में होली से एक दिन पहले जाते हैं और पूरा दिन होली के गीत गाकर आशीर्वाद लेते हैं।
बैरागी समुदाय के श्याम सुंदर ने बताया कि 1650 का समृद्ध इतिहास है जब रघुनाथ जी इस देवभूमि में पधारे तब से यहां यह पर्व होली पर्व यहां पर मनाए जाने लगे। उन्होंने कहा कि इसके पीछे आदि वैष्णव संत बिहारी जी का नाम आता है जिनके सुझाव से अयोध्या से यह मूर्ति आई थी और होली का पर्व बसंत पंचमी (Basant Panchami) से शुरू होता है। बसंत पंचमी के बाद इसका उत्कर्ष रहता है। होलाष्टक 3 मार्च से शुरू है। हर होलाष्टक को संध्या बेला में बैरागी समुदाय के लोग मंदिर में जाकर रघुनाथ जी के साथ होली खेलते हैं और उसी परंपरा के निर्वहन के लिए विरागी समुदाय के लोगों ने महंत बेड के हनुमान मंदिर में होली गायन शुरू कर दिया है। आने वाले दिवस में क्रिश्चन दास पहारी महाराज होलाष्टक जीडी नामक स्थान पर भी 6 मार्च को विरागी समुदाय के लोग होली खेलेंगे और गायन भी करेंगे। इसके साथ ही ठावा में स्थित राधा कृष्ण मंदिर मे भी होली गायन का आयोजन किया जाएगा। यह परंपरा होली गीतों का कार्यक्रम है होली तक यह ऐसे ही जारी रहेगा।