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मंडी। ऐसे समय में जब खेत-खलिहानों से लेकर खाने की मेज तक जहर बढ़ता जा रहा है मंडी जिले (Mandi District) का एक गांव जहर मुक्त खेती वाले गांव के तौर पर अपनी धमक दर्ज करवा रहा है। करसोग उपमंडल की पांगणा उपतहसील के पंजयाणु गांव ने दूर पार के सब गांवों के लिए एक शानदार मिसाल पेश की है। पंजयाणु में करीब डेढ़ बरस पहले इक्का-दुक्का जगह प्रयोग के तौर पर शुरू हुई शून्य लागत प्राकृतिक खेती (Zero cost natural farming) अब 35 से 40 बीघा जमीन पर की जा रही है। आज गांव के 30 परिवार स्वेच्छा से इसे अपना चुके हैं। धीरे-धीरे सारा गांव सौ फीसदी प्राकृतिक खेती वाला गांव बनने की राह पर अग्रसर है।
लीना की लगन ने बदल दी पूरे गांव की सोच
पंजयाणु गांव के लोगों को प्राकृतिक खेती की मोड़ने और इससे जोड़ने में इस गांव की निवासी लीना शर्मा का बड़ा योगदान है। उन्होंने खुद उदाहरण स्थापित कर लोगों को जहर मुक्त खेती के लिए प्रेरित किया है। लीना शर्मा ने बताया कि उनको पिछले साल अक्तूबर में शिमला (Shimla) के कुफरी में कृषि विभाग द्वारा आयोजित प्राकृतिक खेती की अवधारणा के जनक कृषि विज्ञानी पदमश्री सुभाष पालेकर के प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने का मौका मिला जिसके बाद जैसे जहर मुक्त खेती मेरा जुनून बन गई। उन्होंने प्रशिक्षण के दौरान ही ठान लिया था कि खुद तो शून्य लागत खेती करेंगी ही साथ ही अपने गांव में भी लोगों को इससे जोड़ेंगी ताकि सब लोग इससे लाभान्वित हो सकें।
प्रकृति और किसान दोनों के लिए मुफीद
लीना कहती हैं कि यह खेती हर तरह से प्रकृति और किसान दोनों के लिए मुफीद है। एक तो इसमें लागत शून्य है, खाद, केमिकल स्प्रे व दवाईयां खरीदने के भी पैसे बचते हैं। केवल किसान के पास देसी नस्ल की गाय होनी चाहिए, जिससे वे खाद व देसी कीट नाशक बना सकता है। इनके इस्तेमाल से प्रकृति (Nature) भी स्वच्छ रहती है। दूसरा इस पद्धति में क्यारियां, मेढ़ें बनाकर मिश्रित खेती की जाती है, जिससे किसानों की आय दोगुनी करने में भी यह बहुत कारगर है।
जहर मुक्त खेती से बनाई पहचान
लीना बताती हैं कि उन्होंने जब गांव में महिलाओं को इकट्ठा करके शून्य लागत जहर मुक्त खेती की बात बताई तो शुरू में गांववालों ने पैदावार कम होने की आशंका जताई। कीड़ा आदि लगने की स्थिति में केमिकल स्प्रे नहीं करने पर फसल को नुकसान (Loss) होने को लेकर भी उनके मन में कई सवाल थे। ऐसे में लीना ने खुद अपने यहां मॉडल के तौर पर यह कृषि शुरू की। कृषि विभाग करसोग के विषयवाद विशेषज्ञ रामकृष्ण चौहान की सलाह ली। घर पर देसी गाय के मूत्र और गोबर तथा घर पर ही आसानी से उपलब्ध सामान जैसे खट्टी लस्सी, गुड़, खेतों में मिलने वाली वे जड़ी-बूड़ियां जिन्हें गाय नहीं खाती, उनकी पत्तियों को इस्तेमाल कर खुद जीवामृत, घनजीवामृत व अग्निअस्त्र आदि देसी कीट नाशक दवाईयां बनाईं। अपने खेतों में उनका इस्तेमाल किया और अच्छे परिणाम आने पर देखादेखी अन्य महिलाएं भी उनसे जुड़ती चली गईं।
आज प्राकृतिक खेती के लाभ देख कर गांव की करीब 30 महिलाओं ने इसे अपनाया है। गांव में अब ज्यादातर लोग पहाड़ी गाय पालते हैं। गांव की एक महिला भुवनेश्वरी देवी ने तो गोबर व गूंत्र के लिए एक लावारिस देसी गाय को अपने यहां रख लिया है। लीना शर्मा और गांव की एक और महिला किसान सत्या देवी आज प्राकृतिक खेती की मास्टर ट्रेनर बन गई हैं और लोगों को प्राकृतिक खेती के गुर सिखाती हैं।
मिल बांट कर करती हैं काम
प्राकृतिक खेती से जुड़ी पंजयाणु की किसान सावित्री देवी, शीला, गुलाबी देवी, मीना, किरण और गीता हों या कांता, ममता, तारा, शांता, हेमलता और मीरा ये सब महिलाएं खेत खलिहान और घर के काम काज से फ्री होकर दोपहर बाद एक जगह इकट्ठी होती हैं, अपनी-अपनी गाय का गोबर व मूत्र, जड़ीबूटियों की पत्तियां एक जगह एकत्र करती हैं और मिलकर जीवामृत, घनजीवामृत व अग्निअस्त्र जैसी दवाईयां बनाती हैं। इसके अलावा खेतों में भी मिलकर सब काम में एक-दूसरे का हाथ बंटाती हैं।
मिश्रित खेती से लाभ
प्राकृतिक खेती अपनाने वाले पंजयाणु गांव के एक किसान महेंद्र शर्मा बताते हैं कि गांव में मुख्य फसल के साथ मूंगफली, लहसुन, मिर्च, दालें, बीन्स, टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च, अलसी, धनिया की खेती की जा रही है, जिससे किसानों को लाभ हो रहा है। इस खेती में इसमें बीज कम लगता है, उत्पादकता ज्यादा है। करसोग के कृषि विभाग के एसएमएस रामकृष्ण चौहान बताते हैं कि पंचयाणु गांव की सफलता की देखादेखी आसपास के गांव थाच, फेगल और घंडियारा भी शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए आगे आए हैं। क्षेत्र के करीब 90 लोगों ने प्राकृतिक खेती सीखने के लिए प्रशिक्षण लिया है।
सरकार दे रही सब्सिडी
कृषि विभाग मंडी के आत्मा परियोजना के उपनिदेशक शेर सिंह बताते हैं कि हिमाचल सरकार शून्य लागत प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है। देसी नस्ल की एक गाय खरीदने के लिए 25 हजार रुपए तक की सहायता, किसानों को निशुल्क प्रशिक्षण, जीवामृत बनाने के लिए 250 लीटर के ड्रम लेने पर लागत पर 75 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है।
इसके अलावा जिन लोगों के पास देसी गाय है उनकी पशुशाला में फर्श डालने और मूत्र व गोबर को एकत्र करने को चैंबर बनाने के लिए 8 हजार रुपए दिए जा रहे हैं। जिन्हें जीवामृत अथवा घन जीवामृत बनाने व बेचने के लिए संसाधन भंडार बनाना हो उन्हें 10 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है।
क्या कहते हैं डीसी
डीसी ऋग्वेद ठाकुर का कहना है कि मंडी जिले में शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए लोगों को प्ररित किया जा रहा है। इस साल जिले के 3 हजार किसानों ने शून्य लागत प्राकृतिक खेती अपनाई है। जहर मुक्त खेती से भंयकर बीमारियों से बचा जा सकता है साथ ही लागत शून्य होने के चलते किसानों के खर्चों की बचत व मिश्रित खेती तथा अच्छी पैदावार से उनकी आमदनी दोगुनी करने में भी यह सहायक है।
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