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नूरपुर। राजनीति कोई नौकरी या रोजगार नहीं है, बल्कि एक निःशुल्क सेवा है। इसलिए सांसदों को पेंशन नहीं मिलनी चाहिए। राजनीति लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत एक चुनाव है, इसकी सेवानिवृत्ति नहीं है, लेकिन उन्हें फिर से उसी स्थिति में फिर से चुना जा सकता है। यह बात न्यू पेंशन स्कीम कर्मचारी महासंघ के वरिष्ठ उपाध्यक्ष डॉक्टर संजीव गुलेरिया ने प्रेस विज्ञप्ति में कही है।
उन्होंने बताया कि इसमें एक और बड़ी गड़बड़ी यह है कि अगर कोई व्यक्ति पहले पार्षद रहा हो, फिर विधायक बन जाए और फिर सांसद बन जाए तो उसे एक नहीं, बल्कि तीन-तीन पेंशन मिलती हैं। यह देश के नागरिकों के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है, जो तुरंत बंद होना चाहिए। केंद्रीय वेतन आयोग के साथ संसद सदस्यों सांसदों का वेतन भत्ता संशोधित किया जाना चाहिए और इनको इनकम टैक्स के दायरे में लाया जाए।
उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान में वे स्वयं के लिए मतदान करके मनमाने ढंग से अपने वेतन व भत्ते बढ़ा लेते हैं और उस समय सभी दलों के सुर एक हो जाते हैं। डॉक्टर संजीव गुलेरिया ने कहा कि इन नेताओं के खर्च आम आदमी क्यों उठाए। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन स्कीम कर्मचारियों को शीघ्र बहाल न की गई, तो 2019 लोकसभा चुनाव में पढे़-लिखे बेरोजगार युवाओं की फौज और 86 लाख पेंशन विहीन साथियों के परिवार बीजेपी कांग्रेस व अन्य दलों को सत्ता से बाहर करेंगे।
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