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हिन्दू धर्म में भगवान गणेश की पूजा से प्रत्येक शुभ कार्य आरम्भ किया जाता है। भगवान गणेश (Lord ganesha) को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। सनातन धर्म में 24 दिन ऐसे होते है जो पूर्णतः भगवान गणेश की आराधना के लिए समर्पित है। गणपति के जन्मदिवस पर मनाया जाने वाला यह महापर्व महाराष्ट्र सहित भारत के सभी राज्यों में हर्षोल्लास पूर्वक और भव्य तरीके से आयोजित किया जाता है। इस साल गणेश चतुर्थी का पर्व इस वर्ष 2 सितंबर, 2019 को मनाया जाएगा।
भगवान गणेश का मंत्र – “ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा।।”
गणेश चतुर्थी का त्योहार कई रस्में, रीति रिवाज और हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत महत्व रखता है। विनायक चतुर्थी की तारीख करीब आते ही लोग अत्यधिक उत्सुक हो जाते हैं। आधुनिक समय में, लोग घर के लिए या सार्वजनिक पंडालों को भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ति लाते हैं और दस दिन के लिए पूजा करते हैं। त्योहार के अंत में लोग मूर्तियों को पानी के बडे स्रोतों (समुद्र, नदी, झील, आदि) में विसर्जित करते हैं।
इस दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान शिव तथा पार्वती की पूजा भी गणेश जी के साथ करें. सुबह के समय आप अपने पूजा स्थान पर भगवान गणेश की पुजा कर सकते हैं अथवा घर के समीप बने किसी शिवालय में जाकर गणेश जी के साथ शिव भगवान व माता पार्वति की पूजा करें। पूजा में गणेश जी को विधिवत तरीके से धूप-दीप दिखाकर मंत्रों का जाप या गणेश स्तोत्र का पाठ आदि किया जा सकता है। प्रात: श्री गणेश की पूजा करने के बाद, दोपहर में गणेश के बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करना चाहिए। संध्या समय में सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्ट चतुर्थी व्रत की कथा की जाती है, कथा करते अथवा सुनते समय स्वच्छ वस्त्र धारण करें। स्वच्छ आसन पर विराजें। हाथ में चावल और दूर्वा लेकर कथा सुनें. कथा सुनते समय एक लोटे अथवा गिलास में पानी भरकर अपने पास रखें। उस लोटे अथवा गिलास पर रोली से पांच या सात बिन्दी लगा दें और उसके चारों ओर मौली का धागा बांध दें। कथा सुनने के पश्चात पानी से भरा गिलास अथवा लोटे के पानी को आप सूर्य को अर्पित कर दें। यदि सूर्य अस्त हो गया तब आप पानी पौधों में डाल दें। हाथ में लिए गए चावल तथा दूर्वा को एक चुन्नी अथवा साड़ी या साफ रुमाल में बांध लिया जाता है और रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय उन्हीं चावल तथा दूर्वा को हाथ में लेकर गणेश जी व चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता है। कुछ स्थानों पर इस दिन तिल खाने का भी विधान मिलता है। चीनी अथवा गुड़ के साथ तिल को मिलाकर पीसा या कूटा जाता है। इसे तिलकुट के नाम से जाना जाता है। कथा सुनते समय इस तिलकूट को एक पात्र में या कटोरी में भरकर व्यक्ति अपने समीप रखता है और हाथ में चावल के स्थान पर दूर्वा के साथ तिल रखा जाता है। कथा सुनने के उपरान्त जल को सूर्यदेव अथवा पौधों को दे दिया जाता है। कथा सुनते समय जो तिल तथा दूर्वा हाथ में ली जाती है उसे साड़ी या चुन्नी या साफ रूमाल में बांध कर रखा जाता है। रात में चन्द्रमा को अर्ध्य देते समय इसी दूर्वा व तिल को हाथ में लेकर गणेश जी तथा चन्द्र भगवान का ध्यान करते हुए अर्ध्य दिया जाता है।
व्रत के दिन उपवासक को प्रात:काल में जल्द उठना चाहिए। सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नान और अन्य नित्यकर्म कर, सारे घर को गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए। स्नान करने के लिये भी अगर सफेद तिलों के घोल को जल में मिलाकर स्नान किया जाता है तो शुभ रहता है। प्रात: श्री गणेश की पूजा करने के बाद, दोपहर में गणेश के बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करना चाहिए। इसके पश्चात भगवान श्री गणेश धूप, दूर्वा, दीप, पुष्प, नैवेद्ध व जल आदि से पूजन करना चाहिए और भगवान श्री गणेश को लाल वस्त्र धारण कराने चाहिए। अगर यह संभव न हों, तो लाल वस्त्र का दान करना चाहिए। पूजा में घी से बने 21 लड्डुओं से पूजा करनी चाहिए। इसमें से दस अपने पास रख कर, शेष सामग्री और गणेश मूर्ति किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा सहित दान कर देनी चाहिए।
गणेश जी का पूजन सर्वदा पूर्वमुखी या उत्तरमुखी होकर करें। सफेद आक, लाल चंदन, चांदी या मूंगे की स्वयं के अंगूठे के आकार जितनी निर्मित प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति शुभ होती है। साधारण पूजा के लिए पूजन सामग्री में गंध, कुंकुम, जल, दीपक, पुष्प, माला, दूर्वा, अक्षत, सिंदूर, मोदक, पान लें। ब्रह्यवैवर्तपुराण के अनुसार गणेश जी को तुलसी पत्र निषिद्व है। सिंदूर का चोला चढ़ा कर चांदी का वर्क लगाएं और गणेश जी का आह्वान करें।
गजाननं भूतगणांदिसेवितं
कपित्थजम्बूफल चारुभक्षणम्।
उमासूतं शोकविनाशकारकं
नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम्।
उसके बाद गणेश संकट स्तोत्र का पाठ कर आरती करें।
पंडित दयानंद शास्त्री, उज्जैन (म.प्र.) (ज्योतिष-वास्तु सलाहगाड़ी) 09669290067, 09039390067
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