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अपरा एकादशी का व्रत देता है जाने- अनजाने किए पापों से मुक्ति
Last Updated on May 18, 2020 by saroj patrwal
ज्येष्ठ मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘अपरा एकादशी’ कहा जाता है। इसका व्रत रखने से जाने-अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है। इस बार यह एकादशी आज 18 मई 2020 को मनाई जा रही है। पुराणों के अनुसार माना जाता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से कई पापों का नाश होता है। इसका व्रत सुहागिनों के लिए सौभाग्य लेकर आता है।
ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस व्रत को रखने से मनुष्य के सभी मनोरथ पूरे होते हैं और उसे अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है। पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को पड़ने वाली अपरा एकादशी इस बार 18 मई सोमवार यानी कि आज है। जिसे अचला एकादशी के नाम से भी पहचाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। पद्मपुराण के मुताबिक इस व्रत को करने वाले मनुष्य को जीते जी ही नहीं बल्कि मृत्यु के बाद भी लाभ मिलता है।
इस एकादशी के दिन जो व्रत रखता है, वह इस दिन प्रात: स्नान करके भगवान को स्मरण करते हुए विधि के साथ पूजा करे। इस दिन भगवान नारायण की पूजा का विशेष महत्व होता है। साथ ही ब्राह्मणों तथा गरीबों को भोजन या फिर दान देना चाहिए। यह व्रत बहुत ही फलदायी होता है। इस व्रत को करने से समस्त कामों में आपको सफलता मिलती है।
शुभ मुहूर्त–आरंभ: 17 मई की रात 12.44 बजे
समापन: 18 मई को 3.08 बजे
पारण समय: 19 मई को सुबह 5.27 पर
ऐसे करें पूजनः इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान का मनन करते हुए सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। स्नान करने के बाद पूजा स्थल में जाकर भगवान की पूजा विधि-विधान से करें। इसके लिए अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। इसके बाद गंगाजल पीकर आत्म शुद्धि करें। रक्षा सूत्र बांधे। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शंख और घंटी का पूजन अवश्य करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें।
अपरा एकादशी पर इन बातों का ध्यान रखें– अपरा एकादशी का व्रत बहुत नियम से किया जाने वाला व्रत है। इसमें स्वच्छता और संयम का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन क्रोध न करें और किसी भी जीव की हत्या न करें। मन में शुद्ध विचार रखें। किसी की बुराई न करें और न ही अहित करने का विचार मन में लाएं।
अपरा एकादशी की कथाः पुराण में अपरा एकादशी व्रत की कथाप्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक दयालु राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज उससे ईर्ष्या करता था। एक दिन उसने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी और उसके शव को एक पीपल के पेड़ के नीचे दफना दिया। इस अकाल मृत्यु के कारण महीध्वज प्रेत बन गया और आसपास के लोगों को परेशान करने लगा। एक दिन धौम्य ॠषि वहां से जा रहे थे, तभी उन्होंने उस प्रेत को देखा और अपने ज्ञानचक्षु से उस प्रेतात्मा के जीवन से जुड़ी जानकारियां प्राप्त कर लीं। प्रेत की परेशानियों को दूर करने के लिए उसे परलोक विद्या दी। इसके बाद राजा महीध्वज को प्रेत योनि से मुक्ति के लिए धौम्य ॠषि ने स्वयं अपरा एकादशी का व्रत रखा। उस व्रत से जो भी पुण्य ॠषि धौम्य को प्राप्त हुआ उन्होंने वह सारा पुण्य राजा महीध्वज को दे दिया। पुण्य के प्रताप से राजा महीध्वज को प्रेत योनी से मुक्ति मिल गई। इसके लिए राजा ने धौम्य ॠषि को सप्रेम धन्यवाद दिया और भगवान विष्णु के धाम बैकुण्ठ चले गए।