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अपने ही देश के एक गांव के लोग डरे-सहमे हुए हैं, उनका डर ये है कि कहीं उनकी भारतीयता की पहचान ना खो जाए। भारत-बांग्लादेश सीमा (Indo-Bangladesh Border) पर जीरो लाइन के पास स्थित लिंगखोंग गांव के करीब 90 निवासियों में देश के अन्य हिस्सों से कट जाने का भय है। इस जगह पर भारत की सीमा के भीतर 150 गज की दूरी तक, बाड़ लगाने का काम पूरा होने वाला है। पहचान के संकट के भय से सहमे लोग अब अपना दर्द साझा करने लगे हैं। पूर्वी खासी पर्वतीय जिले में लिंगखोंग गांव के पास, एकल बाड़ की नींव रख दी गई है, लेकिन निवासियों के विरोध के चलते इस कार्य को रोक दिया गया है। हालांकि, अधिकारी अब तक इस बात पर सहमत नहीं हुए हैं कि बाड़ नहीं लगाई जाएगी या इसे जीरो लाइन पर ही लगाया जाएगा।
गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि यह ठीक नहीं है कि बाड़ लगने के बाद हमारा गांव भारत के क्षेत्र से बाहर हो जाएगा। हम सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। हम यहां जमाने से रह रहे हैं। सरकार को हमारी सुरक्षा और कुशलता के लिए कुछ करना चाहिए। ये अलग बात है कि बीएसएफ का एक शिविर लिंगखोंग में स्थित है। याद रहे कि मेघालय में भारत.बांग्लादेश सीमा पर करीब 80 फीसदी हिस्से में बाड़ लगाई जा चुकी है। कुछ हिस्सा बाकी है जहां पर या तो निवासियों के विरोध के कारण, बांग्लादेश के बॉर्डर गॉर्ड्स के विरोध के कारण या फिर भौगोलिक स्थिति की वजह से बाड़ नहीं लगाई जा सकी है।
कहते हैं कि राष्ट्र विरोधी तत्व आन जाने के लिए इस आसान सीमा का फायदा उठाते हैं। सुरक्षा के लिहाज से सभी चाहते हैं कि बाड़ जल्द से जल्द लग जाए, लेकिन जीरो.लाइन पर लगे। अस्थायी रूप सेए गांव ने महामारी के मद्देनजर पिछले वर्ष से खुद को बांग्लादेश से अलग करने के लिए बांस और छोटी टहनियों से बनी बाड़ लगा रखी है। समझौते के अनुसारए जीरो लाइन से कम से कम 150 गज की दूरी पर बाड़ लगाई जाती है लेकिन हर बार ऐसा नहीं होता। बांग्लादेश के बॉर्डर गार्ड कुछ मामलों में जीरो लाइन के पास ही बाड़ लगाने के लिए सहमत हो जाते हैं।
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