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नई दिल्ली। अयोध्या-बाबरी मस्जिद मामले (Ayodhya-Babri Masjid case) में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) में हुई सुनवाई में शिया वक्फ बोर्ड ने हिंदू पक्ष का समर्थन किया है। मामले की सुनवाई के दौरान शिया वक्फ बोर्ड के काउंसलर ने बहस की अपील की। उन्होंने कहा कि वह हिंदू पक्ष का समर्थन करते हैं और अपनी बात अदालत में रखना चाहते हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने उन्हें बैठने को कहा। हालांकि, शिया वक्फ बोर्ड इस केस में कोई पार्टी नहीं है।
बोर्ड की ओर से वकील एमसी धींगरा ने कहा कि 1936 में शिया सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाने की बात तय हुई और दोनों की वक्फ सम्पत्तियों की सूची बनाई जाने लगी। 1944 में बोर्ड के लिए अधिसूचना (Notification) जारी हुई। वो मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति थी लेकिन हमारा मुतवल्ली शिया था। गलती से इमाम सुन्नी रख दिया गया। हम इसी वजह से मुकदमा हारे। उन्होंने कहा कि कि 1949 में मुतवल्ली जकी शिया था इस बारे में रिकॉर्ड भी दर्ज हैं।
इस पर कोर्ट ने कहा – ‘आप हिन्दू पक्ष का विरोध नहीं कर रहे हैं, बस इतना ही काफी है। सीजीआई (CGI) ने कहा कि हाईकोर्ट (High Court) में आपकी अपील 1946 में खारिज हुई और आप 2017 में SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट आए। इतनी देरी क्यों? इसके जवाब में शिया वक्फ बोर्ड से वकील ने कहा कि हमारे दस्तावेज सुन्नी पक्षकारों ने जब्त किए हुए थे। अब सोमवार से सुन्नी वक्फ बोर्ड दलील शुरू करेगा। हिंदू महासभा के वकील ने कहा -‘एक बार मंदिर बन गया तो हमेशा मंदिर ही रहता है। राम और कृष्ण हमारे देश की संस्कृति की धरोहर हैं। ये स्थापित दलील है कि बाबर ने मन्दिर तोड़कर मस्जिद का रूप दिया।’
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