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आज कलयुग (Kalyug) है। आज के समय में औलाद अपने माता-पिता (Parents) का ध्यान नहीं रखती। ये वही माता-पिता होते हैं जिन्होंने अपने बच्चों की परवरिश के लिए सारी जिंदगी गंवा दी होती है। मगर जब उनका बुढ़ापा आता है तो उन्हें उपेक्षित और प्रताड़ित किया जाता है। यहां तक उनको बोझ समझ कर वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया जाता है। मगर श्रवण (Shravan) भी एक ऐसा बेटा हुआ है जिसने माता-पिता की सेवा की खातिर अपने जीवन का सुख नहीं देखा। माता-पिता ने जब तीर्थयात्रा की इच्छा जताई तो श्रवण ने इसको अपना कर्तव्य समझ लिया।
भले ही पैरों में चप्पल या जूता नहीं था मगर जैसे-तैसे अपने अंधे माता-पिता को तीर्थ यात्रा करवाने के लिए एक बहंगी का इंतजाम किया और एक निर्धारित समय के अनुसार माता-पिता को यात्रा करवाने चल निकला। पथरीले रास्तों और कंटीले जंगलों की परवाह ना करता हुआ भी वह अपने माता-पिता को तीर्थों के दर्शन करवाता चला गया। इसी आपाधापी में वह राजा दशरथ की रियासत में भी पहुंचा जहां अंधे माता-पिता ने पानी पीने की इच्छा जताई। श्रवण आज्ञा मानकर पानी लाने चला गया और जैसे ही घड़ा पानी में डिबोया तो उसमें आवाज आई। इस आवाज को राजा दशरथ v( King Dashrath) शिकार समझ बैठा और तीर छोड़ दिया और श्रवण की मौके पर ही मौत हो गई। हमें श्रवण सिखा गया कि अपने माता-पिता की सेवा करने में चाहे प्राण भी गंवाना पड़े, हमें पीछे नहीं हटना चाहिए। माता-पिता की सेवा करने से लोक और परलोक दोनों सुधर जाते र्हैं।
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