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इस वर्ष की गणेश चतुर्थी शुभ तिथि, नक्षत्र, योग और वार में होने के कारण शुभ फल देने वाला होगा। इसके अलावा 10 दिनों तक चलने वाले गणेशोत्सव में हर दिन एक शुभ योग बन रहा है साथ ही इस गणेश उत्सव पर एक भी क्षय तिथि नहीं होगी। 13 सितंबर को गणेश चतुर्थी स्वाति नक्षत्र के स्थिर नाम के शुभ योग से गणपति की स्थापना करने पर सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी साथ गजकेसरी का राजयोग भी बन रहा है। 13 सितंबर से 23 सितंबर 2018 तक हर दिन शुभ योग और शुभ नक्षत्र में गणेश उत्सव रहेगा। इन 10 दिनों में अमृत,रवि, प्रीति, आयुष्मान, सौभाग्य, सर्वार्थसिद्धि, सुकर्म और धृति योग बनेगा।
ज्योतिर्विद पं. दयानन्द शास्त्री के अनुसार यह अत्यंत दुर्लभ और शुभ योग करीब 120 वर्ष के बाद बना है । 27 नक्षत्रों में स्वाति नक्षत्र का स्थान 15वां है। इसे शुभ और कार्यसिद्ध नक्षत्र माना गया है। इस नक्षत्र के अधिपति देवता वायुदेव होते हैं। इस नक्षत्र के चारों चरण तुला राशि के अंतर्गत आते हैं जिसका स्वामी शुक्र है। शुक्र धन, संपदा, भौतिक वस्तुओं और हीरे का प्रतिनिधि ग्रह है। गणेश जी पूरे दस दिन अपने माता-पिता से दूर रहते है और फिर वह दस दिन बाद उनके पास लौट जाते हैं। यदि आपके वैवाहिक जीवन में कोई दिक्कत आ रही हो तो पोटली में हल्दी भरकर गणेश जी की प्रतिमा पर लगाएं। जीवन में ज्यादा बाधाएं हो तो चमेली के तेल में सिंदूर मिलाकर गणेश जी को लगाएं। जीवन में ज्यादा बाधाएं हो तो गणेश जी के विनायक स्वरुप की पूजा करें।
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम्ं।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम्॥
एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
नमामि देवं सकलार्थदं तं
सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं।
गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥
गणेश जी स्थापना करना चाहते हैं तो विशेष ध्यान रखना होगा। जाने-अनजाने में आपसे कोई गलती हो जाती है तो आपके संकट दूर होने की बजाय बढ़ सकते हैं और आपकी स्थिति दरिद्रता जैसी हो सकती हैं। तो पहले ही संभल जाइए और गणेश जी की पूजा करने से पहले ये बातें जान लीजिए। राहु काल में कभी भी गणेश जी की पूजा नहीं करनी चाहिए। यदि आप करते हैं तो भारी संकट का सामना करना पड़ सकता है और आप दरिद्र हो सकते हैं। गणेश जी की स्थापना करते समय आप उत्तर-पूर्व दिशा में विराजमान करें। भूलकर भी दक्षिण-पश्चिम में स्थापना न करें इससे हानि हो सकती है। प्रतिमा का मुख दरवाजे की तरफ नहीं होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि गणेश जी की मुख की तरफ सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है जबकि उनकी पीठ की तरफ दरिद्रता का वास होता है अर्थात गणेश जी का मुख हमेशा उस तरफ होना चाहिए जिससे वो घर की तरफ देखते नजर आएं। गणेश चतुर्थी की पूजा करने से पहले नई मूर्ति लाना जरूरी है। इस प्रतिमा को आप अपने मंदिर या देव स्थान में स्थापित कर सकते हैं लेकिन इससे पहले भी कई खास बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। अगर आप गणपति जी की मूर्ति को किसी कारण स्थापित नहीं कर सकते तो एक साबुत पूजा सुपारी को गणेश जी का स्वरूप मानकर उसे घर में रख सकते हैं।
शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है। जो व्यक्ति हर माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करता उसको विशेष लाभ और साथ ही धन लाभ भी होता है। जो हर चतुर्थी नहीं कर सकता वह इस दिन करे तो उसको उसी के बराबर फल की प्राप्ति होती। इस दिन आप शुद्ध जल में सुगन्धित द्रव्य या इत्र मिला करके श्रीगणेश का अभिषेक करें। साथ में गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ भी करें, बाद में लड्डुओं का भोग लगाएं। अगर इस दिन की पूजा सही समय और मुहूर्त पर की जाए तो हर मनोकामना की पूर्ति होती है।
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