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सीता नवमी व्रत से मिलता है पृथ्वी दान का फल
Update: Tuesday, April 24, 2018 @ 9:19 AM
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को पुष्य नक्षत्र के मध्याह्न काल में जब मिथिला के महाराजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए हल से भूमि जोत रहे थे, उसी समय धरती से राजा जनक को एक स्वर्ण जड़ित बक्से में सुंदर सी बालिका मिली। उस बालिका का नाम रखा गया सीता। यह स्थान भारत और नेपाल की सीमा के नजदीक है जिसे ‘जनकपुर’ कहते हैं। जनकपुर वही जगह है जहां माता सीता भूमि से अवतरित हुई थीं। यह स्थान सीता के जन्मस्थान के रूप में सदियों से धार्मिक आस्था का केंद्र है। वे राजा जनक की ज्येष्ठ पुत्री तथा श्रीराम की पत्नी थीं। जनकपुर अपनी भाषा और लिपि के साथ प्राचीन मैथिली संस्कृति का केंद्र है। यहां के निवासी सीता को जानकी देवी कहते हैं।

- यहां की बोली मैथिली अभी भी व्यापक रूप से इस क्षेत्र में बोली जाती है।
- सीता नवमी के इस पावन पर्व पर जो व्रत रखता है तथा भगवान रामचन्द्र सहित भगवती सीता का अपनी शक्ति के अनुसार भक्तिभाव पूर्वक विधि-विधान से सोत्साह पूजन वन्दन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल, महाषोडश दान का फल, अखिलतीर्थ भ्रमण का फल और सर्वभूत दया का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
- ‘सीता नवमी’ पर व्रत और पूजन हेतु अष्टमी तिथि को ही स्वच्छ होकर शुद्ध भूमि पर सुन्दर मंडप बनाएं। यह मंडप सोलह, आठ अथवा चार स्तम्भों का होना चाहिए। मंडप के मध्य में सुन्दर आसन रखकर भगवती सीता एवं भगवान श्रीराम की स्थापना करें।

- पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, काठ एवं मिट्टी इनमें से सामर्थ्य अनुसार किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है। मूर्ति के अभाव में चित्र द्वारा भी पूजन किया जा सकता है।
- नवमी के दिन स्नान आदि के पश्चात् जानकी-राम का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए।
- ‘श्री रामाय नमः’ तथा ‘श्री सीतायै नमः’ मूल मंत्र से प्राणायाम करना चाहिए।
- ‘श्री जानकी रामाभ्यां नमः’ मंत्र द्वारा आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पंचामृत स्नान, वस्त्र, आभूषण, गन्ध, सिन्दूर तथा धूप-दीप एवं नैवेद्य आदि उपचारों द्वारा श्रीराम-जानकी का पूजन व आरती करनी चाहिए।
- दशमी के दिन फिर विधिपूर्वक भगवती सीता-राम की पूजा-अर्चना के बाद मंडप का विसर्जन कर देना चाहिए। इस प्रकार श्रद्धा व भक्ति से पूजन करने वाले पर भगवती सीता व भगवान राम की कृपा प्राप्ति होती है।