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सिंहासनगता नित्यं पद्याञ्चितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। इनकी आराधनासे मनुष्य सुख-शांति की प्राप्ति करता है। सिंह के आसन पर विराजमान तथा कमल के पुष्प से सुशोभित दो हाथो वाली यशस्विनी देवी स्कन्दमाता शुभदायिनी है। भगवान स्कन्द बालरूप में माता की गोद में बैठे होते हैं इस दिन साधक का मन विशुध्द चक्र में अवस्थित होता है। स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं| इनकी उपासना करने से साधक अलौकिक तेज की प्राप्ति करता है | यह अलौकिक प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता है। एकाग्रभाव से मन को पवित्र करके मां की स्तुति करने से दुःखों से मुक्ति पाकर मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है| पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं। स्कंदमाता की उपासना से साधक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
कहा गया कि देवी स्कन्द माता ही हिमालय की पुत्री पार्वती हैं। इन्हें ही माहेश्वरी और गौरी के नाम से जाना जाता है। यह पर्वत राज की पुत्री होने से ही पार्वती कहलाती हैं। महादेव की मिनी यानी पत्नी होने से माहेश्वरी कहलाती हैं,और अपने गौर वर्ण के कारण देवी गौरी के नाम से पूजी जाती हैं। माता को अपने पुत्र से अधिक प्रेम है। अत: मां को अपने पुत्र के नाम के साथ संबोधित किया जाना अच्छा लगता है। जो भक्त माता के इस स्वरूप की पूजा करते है, मां उस पर अपने पुत्र के समान स्नेह लुटाती हैं।
स्कंदमाता की उपासना मोक्ष के द्वार खोलने वाली है।माता अपने भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।साधकों के आराधना के लिए यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे अच्छी तरह से याद कर नवरात्रि में पांचवें दिन सच्चे मन से इसका जाप करना चाहिए-
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
भावार्थ : हे मां! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है । हे मां मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें ।
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