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कमाई व खर्च में जमीन-आसमान का अंतर हो तो अकसर मुंह से ये चर्चित मुहावरा फूट पड़ता है-कमाई चवन्नी, खर्चा अठन्नी. यानी कमाई 25 पैसे और खर्च पचास पैसे. हिमाचल सरकार भी इसी मर्ज से जूझ रही है. राज्य सरकार की सालाना कमाई अधिकतम सोलह हजार करोड़ रुपए है और खर्च 27 हजार करोड़ रुपए सालाना है. यानी खर्च अधिक और कमाई कम है. सरकार का खर्च कमाई से डेढ़ गुना से भी अधिक है. ऊपर से कर्ज का मर्ज विकराल है. इस मर्ज का अंदाजा आंकड़ों से लगता है. राज्य सरकार ने दो साल में 28 हजार करोड़ रुपए के करीब कर्ज लिया है. इसमें से 10 हजार करोड़ रुपए तो पिछले कर्जों के ब्याज चुकाने पर लगे हैं. पिछले कर्ज के मूलधन के रूप में सरकार ने 8 हजार करोड़ रुपए वापस किए हैं. ये आंकड़े खुद सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मीडिया से शेयर किए हैं. एक तरह से राज्य सरकार की आर्थिक गाड़ी कर्ज के सहारे चल रही है. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दावा किया है कि उनकी सरकार ने सत्ता में आने के बाद से 2200 करोड़ रुपए का अतिरिक्त राजस्व जुटाया है. सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हर महीने वेतन व पेंशन के 2000 करोड़ रुपए के खर्च को लेकर है. यही कारण है कि वर्ष 2024 में हिमाचल सरकार का आर्थिक संकट सुर्खियों में रहा था. अब नए साल यानी वर्ष 2025 की शुरुआत सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली सरकार के लिए अच्छी रही है.