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नई दिल्ली। महिला सैन्य अधिकारियों को परमानेंट कमीशन (Permanent commission) देने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि समाज पुरुषों के लिए पुरुषों द्वारा बनाया गया है, अगर यह नहीं बदलता है तो महिलाओं को समान अवसर नहीं मिल पाएगा। शॉर्ट सर्विस कमीशन में परमानेंट कमीशन देने के मामले में जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने फैसला सुनाया है।
जस्टिस चंद्रचूड़ (Justice Chandrachud ) ने कहा कि महिला अधिकारियों को सेना में स्थायी कमीशन देने के लिए ACRs का तरीका भेदभावपूर्ण और मनमाना है, आर्मी का यह तरीका महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का सामान अवसर नहीं दे पाएगा। कोर्ट ने स्थाई कमीशन के योग्य महिला अधिकारियों को दो महीने के भीतर पदभार देने का निर्देश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है की ACR यानी सर्विस का गोपनीय रिकॉर्ड मेंटेन करने की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी हो, इसके मूल्यांकन की प्रक्रिया नए सिरे से तय की जाए ताकि किसी अधिकारी के साथ भेदभाव नहीं हो।
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने इस पर 2010 में पहला फैसला दिया था। 10 साल बीत जाने के बाद भी मेडिकल फिटनेस और शरीर के आकार के आधार पर स्थायी कमीशन ना देना सही नहीं है, ये भेदभाव पूर्ण और अनुचित है। सुप्रीम कोर्ट ने सेना को निर्देश दिया कि वह एक महीने के अंदर महिला अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन देने पर विचार करे और नियत प्रक्रिया का पालन करते हुए 2 महीने के भीतर इन अधिकारियों को स्थायी कमीशन दे। इससे पहले पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने का आदेश दिया था। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2010 में भी महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने का आदेश दिया था, लेकिन 284 में से सिर्फ 161 महिलाओं को परमानेंट कमिशन दिया गया है। इन लोगों को मेडिकल ग्राउंड पर रिजेक्ट किया गया था। आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिनको रिजेक्ट किया है उनको एक और मौका दिया जाए।
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