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परिवार के बच्चे ही उस घर का आईना होते हैं तथा बताते हैं कि उस घर में आधुनिक जीवन के संस्कार किस हद तक आ पाए हैं। यदि बच्चे घर आने वाले लोगों पर प्रभाव नहीं डाल पाते हैं, तो यह हमारी निराशा का कारण बन जाता है। हर परिवार व घर के लोगों की पहली ख्वाहिश होती है कि उनके बालक सुसभ्य तथा संस्कारवान हों। इसके लिए यदि समय रहते उन्हें शिष्टता का पाठ न पढ़ाया जाए, तो बच्चों में उदंडता तथा उच्छृंखलता का प्रतिशत बढ़ जाता है तथा सामान्य शिष्टाचार भी नहीं आ पाता।
बच्चे जान ही नहीं पाते कि किसी के घर आने पर उन्हें ‘नमस्ते’, ‘नमस्कार’ अथवा ‘गुड मार्निंग’ या ‘गुड नाइट’ भी कहना होता है। बच्चों को यह भी पता नहीं चलता, कि जब बड़े बात कर रहे हों तो उन्हें बीच में जाकर अपनी बात नहीं कहनी चाहिए। अल्पायु में जैसा बालक को आप बनाएंगे-सिखाएंगे, वही वह बड़ा होकर भी करेगा। इसके अभाव में बच्चा जब बड़ा होता है, तो उसे ये शब्द बोलना अटपटा तथा संकोचपूर्ण लगता है। बचपन से ही यदि यह शब्द उसकी आदत में आ जाते हैं तो उसे इनका अभ्यास हो जाता है तथा वे शिष्टाचार को सीख लेते हैं।
बच्चों को हमें दूसरी जगह भी जाना ले जाना होता है। उन्हें उस समय जो ‘मैनर्स’ रखने हैं, उसका भी ज्ञान कराइए इसलिए मेहमान नवाजी के नियमों के साथ मेजबानी के मोटे नियम बच्चों के ज्ञान-कोष में पैदा किए जाने चाहिए। दूसरों के यहां जाकर अक्सर बच्चे वहां रखी चीजों को छेड़ने लगते हैं, किताबें फैलाने लगते हैं अथवा कांच की चीजों को तोड़-फोड़ डालते हैं। उसे भली-बुरी बात का ज्ञान कराऐं। खाने-पीने, रहने-सहने, ओढ़ने-पहनाने, बोलचाल एवं उठने-बैठने का सलीका आप स्वयं को ही बताना होगा। उसे ज्ञान कराना होगा कि यह गलत है और यह सही है। निरंतर उसके मानस पर अच्छी बातों का प्रभाव बनाए रखने से वह सलीका जानने लगता है। वे बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करें, बड़ों से कैसे बोलें, स्कूल में शिक्षकों के साथ किस तरह सम्मान का बरताव करें। यही नहीं पढ़ने तथा नहाने-धोने सोने का भी समुचित’ ज्ञान दिया जाना अपेक्षित होता है।
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