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राजा कृष्णदेव राय की माता बहुत वॄद्ध हो गई थीं। उन्हें लगा कि अब वे शीघ्र ही मर जाएंगी। उन्हें आम बहुत पसंद था इसलिए वे आम दान करना चाहती थीं, परंतु अपनी अंतिम इच्छा की पूर्ति किए बिना ही मॄत्यु को प्राप्त हो गईं। राजा ने सभी विद्वान ब्राह्मणों को बुला कर अपनी मां की अंतिम इच्छा के बारे में बताया। ब्राह्मण बोले-अंतिम इच्छा के पूरा न होने की दशा में तो उन्हें मुक्ति ही नहीं मिल सकती। वे प्रेत योनि में भटकती रहेंगी आपको उनकी…पुण्यतिथि पर सोने के आमों का दान करना पडे़गा।
राजा ने मां की पुण्यतिथि पर कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलाया और प्रत्येक को सोने से बने आम दान में दिए। तेनाली राम उनकी चाल समझ गया। अगले दिन तेनालीराम ने ब्राह्मणों से कहा कि वह भी अपनी माता की पुण्यतिथि पर दान करना चाहता है, क्योंकि वे भी अपनी एक अधूरी इच्छा लेकर मरी थीं। सभी ब्राह्मण उनके घर गए भोजन के बाद के बाद उन्होंने देखा कि तेनाली आग में सलाख गर्म कर रहा है उसने कहा -मेरी मां के पैर का फोड़ा पक गया था। वे चाहती थीं कि उसे गर्म सलाख से दागा जाए। ब्राह्मण समझ गए और क्षमा मांग कर तेनाली को सारे सोने के आम देकर चले गए।
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