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शिमला। हिमाचल प्रदेश के हिमालयन क्षेत्र में पिछले कुछ सालों से कम बर्फबारी के चलते दुनिया के दो सबसे मीठे और स्वादिष्ट सेब की प्रजातियां लुप्त होने की कगार पर हैं। हालिया शोध के मुताबिक, स्नोलाइन (हिमरेखा) के पीछे खिसकने और बढ़ती गर्मी से ‘गोल्डन डिलिशियस’ और ‘रेड डिलिशियस’ प्रजाति के सेबों की पैदावार चार दशकों में 90 फीसदी तक घटी है।
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलाजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. डीपी डोभाल के मुताबिक, हिमाचल प्रदेश के साथ ही उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में स्नोलाइन औसतन लगभग 40 से 50 मीटर तक पीछे चली गई है। इसी तरह ग्लेशियर भी काफी पीछे गए हैं। पहले हिमालय में पांच हजार मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पहले साल भर बर्फ गिरा करती थी, लेकिन अब यहां पर जून, जुलाई और अगस्त में बर्फ गिरने के बजाय बारिश हो रही है।
गोल्डन और रेड डिलिशियस सेब को लगभग 1200 से 1400 घंटे यानी 45 दिनों तक शून्य से तीन डिग्री तक के तापमान जरूरत होती है, लेकिन इसका आधा बर्फीला मौसम भी इन फसलों को नहीं मिल रहा। इसकी बजाय असमय बारिश, ओलावृष्टि से फसल और बर्बाद हो रही है।
सेब की कई प्रजातियां हिमालय से लगती ढलानों में होती है। उच्च गुणवत्ता वाली डिलीसियस प्रजाति 3400 मीटर तक पाई जाती है। इससे कम ऊंचाई 1500 मीटर पर स्पर किस्में उगाई जा सकती हैं।
दुनिया भर में सेब की 7500 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें रेड डिलीसियस और गोल्डन डिलीसियस सबसे स्वादिष्ट प्रजाति होती है।
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